SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ कविवर बूचराज एवं उनके सशकालीन कवि रचना काल पञ्च सहेली गीत का रचना काल संवत् १५७५ फागुण सुदि पूर्णिमा है । उस दिन होली थी और कवि भी होली के उन्मुक्त मानन्द में ऐसी सरस रचना लिखने में सफल हुए थे। इसलिए स्वयं ने लिखा है कि उसने अपने मन के मधुर भाषों से इस रचना को निबद्ध किया है। मीठे मन के भावते, कीया सरस बखाण । प्रण जाण्या गुरिख हसइ, रीझइ चतुर सुजाण ।। ६७।। भाषा धीहल राजस्थानी कवि हैं । उनको कृतियों की भाषा के सम्बन्ध में वा शिवप्रसाद सिंह ने लिखा है कि कवि की कुछ पाण्डुलिपियां प्रजभाषा के निकट है जबकि कुछ पर राजस्थानी प्रभाव ज्यादा है। मामेर शास्त्र भण्डार वाली पाण्डुलिपि को उन्होंने राजस्थानी प्रभावित कहा है। लेकिन अन्त में वे यही निष्कर्ष निकालते हैं कि पप सहेली गीत की भाषा राजस्थानी मिथित प्रजभाषा है 11 अनूप संस्कृत लाइब्रेरी में इसकी चार प्रतियां हैं जिनमें तीन का नाम मो "पञ्च सहेली री बात" दिया हुआ है। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रतिलिपिकार इसे राजस्थानी भाषा की कृति मान कर चलते थे। से कृति की अधिकांश शब्दावली राजस्थानी भाषा की है । न्हाईया (११) प्रवालीयां (१२) बालीयां (१३) अल्यु (१७) कुमलाईया (१६) चंपाकेरी (२२) वीघा (२९) प्रादि शब्द एवं क्रिया पद समी राजस्थानी भाषा के हैं। पञ्च सहेली गीत एक लोकप्रिय कृति रही है। राजस्थान के कितने ही शास्त्र भण्डारों में इसकी प्रतियां संग्रहीत है । १. दि० जैन शास्त्र भण्डार मन्दिर ठोलियान – गुटका संख्या ६७ । २. भट्टारकी शास्त्र भण्डार अजमेर - गुटका संख्या १३८ । ३. शास्त्र भण्डार दि० जैन मन्दिर चौधरियों का मालपुरा (टोंक) -- गुटका संख्या ११ ।। ४, ममूप संस्कृत लाइब्रेरी केटलाग राजस्थानी सेक्सन न० ७८ छंद सं०६६ पत्र १९-२२ लिपि काल सं० १७१८ । नं. १४२ पृ० ७६-७७ । १. पूर पूर्व बजभाषा और उसका साहित्य-पृ० १७०-७१ । २. बही ।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy