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________________ छोहल १२५ थी। लेकिन उनमें पांच सहेलियां ऐसी भी थीं जो न नाचती थी, न गाती थी और न हसती थी। कवि के शब्दों में उनकी दशा निम्न प्रकार थी तिन महि पंच सहेलियां नाना गावइ न इसाइ । ना मुख बोलई बोल... ...............""| नयनह काजल ना बीड, ना गलि पहिम्दो हार । मुख तम्बोल न खाईया, ना फछु किया सिंगार ॥१०॥ रूखे केस ना न्हाईया, मइले कप्पच तास । बिलखी पइसी उनमनी, लांबे लेहि उसास ।।११ सुन्दरियों ने जब उन्हें उदास देखा तो उसका कारण जानना चाहा क्योंकि साथ की सहेलियों ने कहा कि वे यौवनवती हैं उनकी देह भी रूप बाली है। फिर इतनी उदासी का क्या कारण है । यह सुनकर उन्होंने मधुर स्वर से अपना-अपना सच्चा दुख निम्न प्रकार कहा उन्होने कहा कि वे एक ही घर की प्रथवा जाति की नहीं अपितु मालिन, तम्बोलिन, छीपन, फलालिन एवं सुनारिन जाति की है । लेकिन विरह का कारण सब का समान है। इसलिए एक-एक में अपने दुख का कारण कहना बारम्भ कियासर्वप्रथम मालिन जाति की योवना स्त्री ने कहा कि उसका पति उसे छोड़कर परदेश पला गया है। जिसके विरह से वह प्रत्यधिक दुःखी है । उसका एक दिन एक वर्ष के बराबर ध्यतीत होता है। यौवनावस्था में पतिदेव परदेश चले गये हैं 1 रात्रि दिन आँखों में से प्रांसू बहते रहते हैं। कमल के समान मुख कुम्हला गया है । सारा बाग सूख गया है। शरीर रूपी वृक्ष पर फूल लगने लगे हैं तथा दोनों नारंगियां रस से प्रोतप्रोत हैं लेकिन अब वे बिरह से सूखने लगी हैं क्योंकि वन को सींचने वाला माली परदेश गया हुआ है ।। पहिली बोली मासनी मुझको दुख अनन्त । बालाइ यौवन छाँहि कह, बल्यु दिसाउरि कंत ।।१७।। निस दिन बहपई पचाल ज्यु, नयनह नीर अपार । विरहउ माली दुक्ख का सूभर भरपा शिवार ।।१८।। कमल बदन कुमलाईया, सूकी सुख बनर । वायू पीयारइ एक खिन, बरस बराबरि जाइ ।।१६।। तन तरवर फल लागिया दुइ नारिंग रसपूरि । सूखन लगा विरह झल, सौचन हारा दूरि ॥२०।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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