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________________ दिल्ली आकर दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान की स्थापना की। सम्पूर्ण गतिविधियों में दिल्लीवासियों का भरपूर सहयोग मिला। जिसमें सर्वप्रथम पूज्य माताजी की प्रेरणा से जम्बूद्वीप रचना के लिए मैंने पच्चीस हजार रुपये की दान राशि घोषित की। और उक्त राशि भेजने के लिए पिताजी को पत्र दिया। मेरे मन में तो भय था, किन्तु पिताजी ने यह राशि बड़े प्रेमपूर्वक भेजकर मेरा उत्साह द्विगुणित कर दिया। आगे भी विपुल धनराशि जम्बूद्वीप रचना के लिए प्रदान करते रहे । इसे मैं अपना सौभाग्य ही समझता हूँ | साहित्य प्रकाशन के साथ ही सन् १९७४ में सम्यग्ज्ञान हिन्दी मासिक का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। जिसमें अब तक के सम्यग्ज्ञान अंकों की प्रकाशन संख्या ९ लाख एवं साहित्य प्रकाशन की संख्या १० लाख तक पहुँच चुकी है। सन् १९७४ में भगवान महावीर का पच्चीस सौवाँ निर्माण महोत्सव के पावन प्रसंग पर हस्तिनापुर आकर जम्बूद्वीप रचना निर्माण के लिए नसिया मार्ग पर किसान से भूमि क्रय की । कई बार अनेक कठिनाइयाँ आने से मेरा उत्साह भंग होने लगता तो पूज्य माताजी धैर्य व साहस प्रदान करती। भूमि क्रय करके वापस दिल्ली पहुँचे । निर्वाण महोत्सव सम्पत्र होने के पश्चात् पुन: हस्तिनापुर आये । जम्बूद्वीप रचना निर्माण की गतिविधियाँ प्रारम्भ हो गईं । जहाँ अनेक धर्म स्नेही महानुभावों का सहयोग मिलता रहा। वहीं कुछ अपने ही लोगो से रुकावट के दुष्प्रयास भी चलते रहे । किन्तु सदैव सत्य की जीत होती रही । कार्य धीमी-तेज गति से चलता रहा । शूल फूल बनकर मार्ग प्रशस्त करते रहे। सर्वप्रथम १९७५ में जम्बूद्वीप स्थल पर भगवान् महावीर की ९ फुट उत्तुङ्ग प्रतिमा पंचकल्याणक प्रतिष्ठापूर्वक विराजमान हुई । सन् १९७९ में २१ अप्रैल से ३ मई तक सुदर्शन मेरु जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा निर्विघ्न एवं सानन्द सम्पत्र हुई। इस प्रकार ८४ फुट ऊँचे सुदर्शनमेझ निर्माण के साथ प्रथम चरण महान् सफलता एवं प्रभावनापूर्वक सम्पन्न हुआ। पुन: उल्लासपूर्ण वातावरण में दूसरे चरण का कार्य चलाने को योजनाबद्ध किया गया। ४ जून १९८२ को स्व० प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के कर-कमलों से जम्बूद्वीप ज्ञान-ज्योति का प्रवर्तन लाल किला मैदान दिल्ली से हुआ। मुझे पूज्य माताजी के कृपा प्रसाद से एक स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ । ज्ञानज्योति के साथ नगर-नगर, डगर-डगर भ्रमण करने का, हजारों जिनमन्दिरों के दर्शन, लाखों धर्म श्रद्धालुओं से भेंट एवं करोड़ों नर-नारियों तक भगवान् महावीर के पावन सिद्धान्तों को पहुँचाने का। उधर ज्योति प्रवर्तन चल रहा था इधर द्रुत गति से निर्माण, और आ गया अप्रैल १९८५, जम्बूद्वीप जिनविम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का मंगल अवसर । इधर धूमधाम से प्रतिष्ठा प्रारम्भ होने जा रही थी और उधर से १०४५ दिनों का महाभ्रमण करके २८ अप्रैल को हस्तिनापुर आ पहुँची ज्ञानज्योति, जिसकी अगवानी के लिए आये थे भारत सरकार के तत्कालीन रक्षामन्त्री श्री पी० वी० नरसिंह राव । श्रवणबेलगोला के महामस्तकाभिषेक महोत्सव के अतिरिक्त यह पहली पंचकल्याणक प्रतिष्ठा थी जिसमे देश भर के सम्पूर्ण प्रदेशो से नर नारी अपूर्व उल्लास को लेकर आये थे। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री श्री नारायण दत्त तिवारी ने स्वयं दो बार जम्बूद्वीप स्थल पर पधार कर महोत्सव को सफल बनाने में अभूतपूर्व प्रशासनिक सहयोग प्रदान किया यह प्रतिष्ठा भी २ मई को विविध उपलब्धियों के साथ सम्पन्न हुई।
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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