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________________ ३३६ कातन्त्ररूपमाला कर्मणि भजो विण् भवति । वेलोपोऽपृक्तस्य इति वेलोपो भवति ॥ अर्द्धभाक् । पादभाक् । सहः छन्दसि ॥६४७ ॥ छन्दसि भाषायां सहो विण् भवति । तुरांसहते । सहेष्वो वः ॥६४८॥ सहेस्सकारस्य षत्वं भवति हकारस्य ढकारो भवति चेत् । तुराषा तुरासाही तुरासाहः । वहश्च ।।६४९॥ नाम्नि उपपदे वह विण् भवति । प्रष्ठवाट प्रष्ठौही । अनसि डच ।।६५०॥ अनस्युपपदे वहश्च विण् भवति । अनसच डो भवति । अनड्वान् । अनडुही । दुहः को घश्च ॥६५१॥ दुहः को भवति अन्तस्य घादेश: । ब्रह्मदुधा । कामदुघा । विट् कमिगमिखनिसनिजनाम् ॥६५२॥ नाभि एभ्यो विट् भवति । विड्वनोराः ।।६५३॥ णानुबंध से वृद्धि एवं 'वेलोंपोऽपृक्तस्य' सूत्र से 'वि' का लोप होकर प्रत्यय कुछ भी शेष नहीं रहा है। अर्द्धभजति इति- अर्द्धभाक्, पाद भाक् ज् को ग होकर प्रथम अक्षर हुआ है 'चवर्गदगादीनां च' सूत्र से सिके आने पर ज् को ग् हुआ है। छन्द भाषा में 'सह' से विण होता है ।।६४७ ॥ तुरांसहते । इति– सह के सकार को षकार और हकार को ढकार हो जाता है ॥६४८ ॥ तुराषाड् तुरासाही तुरासाह: इत्यादि । नाम उपपद से वह धातु से विण् प्रत्यय होता है ॥६४९ ॥ प्रष्ठं वहति इति—प्रष्ठवाट प्रष्ठौही। अनस् उपपद में 'वह' से विण होता है ॥६५० ॥ अनस् के स् को 'उ' होता है। अनड्वान', अनडुही।। दुह धातु से 'क' प्रत्यय होता है और अंत को 'घ' आदेश होता है ॥६५१ ॥ ब्राह्मणं दोग्धि इति—ब्रह्म दुघा, कामदुधा। कम् गम् खन् सन् और जन् के नाम उपपद में रहने से विट् प्रत्यय होता है ।६५२ ॥ विट और वन प्रत्यय के आने पर पंचमान्त को आकार हो जाता है ॥६५३ ॥ १. अनः शकटं वहतीति ।
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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