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________________ कृदन्त: ३३१ कर्मण्युपपदे एजयतेरिनन्तात् खश् भवति । एजू कंपने । जनमेजयतीति जनमेजयः । शुनीस्तनमुलकूलास्वपुष्पेषु धेटः ॥६१७ ।। एषु कर्मसूपपदेषु धेट: खश् भवति । दीर्घस्योपपदस्थानव्ययस्य खानुबन्धे ॥६१८॥ दीर्घान्तस्यानव्ययस्योपपदस्य ह्रस्वो भवति खानुबन्धे कृति परे । थेट पाने। शुनी धयतीति शुनिधयः । स्तनं धयतीति स्तनंधयः । मुझंधयः । कूलन्धयः । आस्यन्धयः । पुष्पंधयः । शुनिन्धयी । नाडीकरमुष्टिपाणिनासिकास ध्मश्च ॥६१९ ॥ एषु कर्मसूपपदेषु धमतेधेटश्च खश् भवति । नाडिन्धमः। करन्थमः । करन्धयः । मुष्टिन्धयः । मुष्टिन्धमः । पाणिन्धय: । पाणिन्धमः । नासिकन्धम: । नासिकन्धयः । विध्वरुस्तिलेषु तुदः ॥६२० ।। एषु कर्मसूपपदेषु तुद: खशू भवति । विधुंतुदः । संयोगादेधुंटः ।।६२१॥ संयोगादे(टो लोपो भवत्ति धुटि परे । अरुंतुदः तिलन्तुदः । असूर्योग्रयोदशः ॥६२२ ॥ अनयोरुपपदयोर्दश: खश् भवति । असूर्यपश्या राजदाराः । उग्रंपश्याः । जनम् एजयतीति = जनमेजयः । खानुबंध से अनुस्वार आगम एवं शानुबंध से सार्वधातुकवत् कार्य होता है। शुनी स्तन, मुञ्ज, कूल, आस्य और पुष्प इनके उपपद में आने पर धेट् धातु से खश् प्रत्यय होता है ॥६१७ ॥ धेट-पीना। शुनी धयतीति । अव्यय रहित दीर्घान्त उपपद को खानुबंध कृत्प्रत्यय के आने पर ह्रस्व हो जाता है ॥६१८॥ शुनिधयः, स्तनंधयः इत्यादि । नाडी, कर, मुष्टि, पाणि और नासिका के उपपद में रहने पर ध्मा और धेट् धातु से खश् प्रत्यय होता है ॥६१९॥ नाडी धमति इति 'नाडिंघम:' ६१८ सूत्र से हस्व हुआ है। एवं 'ध्योधमः' इस ६५वें सूत्र से मा को धम आदेश हुआ है। ऐसे ही धेट् से नाइिंधय: इत्यादि। विधु, अरुस् और तिल के उपपद में रहने पर तुद् धातु से खश् प्रत्यय होता है ॥६२० ॥ विद्युतुदः । संयोगादि धुट का लोप हो जाता है धुट के आने पर ॥६२१ ॥ यहाँ अरुस् के सकार का लोप हो गया है अत: अरुंतुदः, तिलन्तुदः । असूर्य और उग्र से परे दृश् धातु से खश् प्रत्यय होता है ॥६२२ ॥ असूर्यपश्या उग्रंपश्या, “दृशे: पश्यः” सूत्र ६९ से दृश् को पश्य हुआ है।
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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