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________________ २५० कातन्त्ररूपमाला स्थादोश्च ।।२४२॥ स्स्थादासंज्ञकयोर्गुणो न भवति अनिटि सिंजाशिषोश्चात्मनेपदे परे । ह्रस्वाच्चानिटः ।।२४३ ॥ ह्रस्वात्परस्य अनिट: सिचो लुग्भवति धुटि परे । समस्थित समस्थिषातां समस्थिषत । समस्थिथा: समस्थिपाथां समस्थिध्वं । समस्थिषि समस्थिष्वहि समस्थिष्महि ॥ अदित अदिषातां अदिषत । अदिथा: अदिषाथां अदिध्वं । अदिषि अदिष्वहि । अदिष्महि । ऐधिष्ट ऐधिषातां ऐधिषत । ऐधिष्ठ्यः ऐधिषाथा ऐधिध्वं । ऐधिषि ऐधिष्वहि ऐधिामहि । पचिवचिसिचिरुचिमुचेश्चात् ॥२४४ ॥ एभ्य: पञ्चभ्यः परमसार्वधातुकमनिड् भवति । अस्य च दीर्घः ।।२४५ ।। व्यञ्जनान्तानामनिटामुपधाभूतस्यास्य दोधों भवति परस्मैपदे सिचि परे । सिचः ॥२४॥ सिधः परयोर्दिस्योरादिरीद्भवति । अपाक्षीत् । धुश्श धुटि ।।२४७ ।। धुटः परस्य सिंचो लोपो भवति धुटि परे । अपाक्तां अपाक्षुः । अपाक्षी: अपक्तिं अपाक्त । अपाक्ष अपाक्ष्व अपाक्ष्म । अपक्त अपक्षातां आपक्षत । अपक्था: अपक्षाथां अपग्ध्वं । अपक्षि अपक्ष्वहि अपक्ष्महि । वद व्यक्तायां वाचि! स्था दा संज्ञक धातु को अनिट् सिच् आशीस के आने पर आत्मनेपद में गुण नहीं होता है ॥२४२ ॥ ह्रस्व से परे इट् नहीं होने से सिच् का लोप हो जाता है ॥२४३ ॥ समस्थित, प्रास्थित आदि बनेंगे। दा धातु से अदित अदिषातां अदिषत । एध् धातु से ऐधिष्ट ऐधिषातां ऐधिषत। पच् वच् सिच् रुच् और मुच् ये पांच धातु असार्वधातुक में इट् रहित होते हैं ॥२४४ ॥ परस्मैपद में सिच् के आने पर व्यञ्जनान्त अनिट् धातु की उपधा के अकार को दीर्घ हो जाता है ॥२४५ ॥ सिच् के परे दि और सि विभक्ति की आदि में 'ई' हो जाता है ॥२४६ ।। पच् दि है सिच् अट् उपधा को दीर्घ, 'ई' आदेश होकर अपाक्ष ई त् = अपाक्षीत् बना । धुट से परे धुट के आने पर सिच् का लोप हो जाता है ॥२४७ ॥ अपाक्तां अपाक्षुः । आत्मनेपद में पच् की उपधा को दीर्घ न होकर अपक्त अपक्षातां अपक्षत बना। वद—स्पष्ट बोलना।
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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