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________________ १४४ कातन्त्ररूपमाला संयमाय श्रुतं धत्ते नरो धर्माय संयमम् । धर्म मोक्षाय मेधावी धनं दानाय भुक्तये ।।१।। तुमर्थाच्च भाववाचिनः ॥३९९ ।। तुम: समानार्थाद्धाववाचिप्रत्ययान्ताल्लिाच्चतुर्थी भवति । भाववाचिनश्चेति वक्ष्यति । पाकाय व्रजति । पक्तये व्रजति । पचनाय वति । हुंकामानि इत्यर्थः । कस्मिन्नर्थे पश्चमी ? अपादाने पञ्चमी । किमपादानं ? ध्यतोऽपैति भयमादत्ते तदपादानम् ॥४००।यस्मादपैति यस्माद्भयं भवति यस्मादादते वा तत्कारकमपादानसंज्ञं भवति । वृक्षात्पर्ण पतति । व्याघाबिभेति । उपाध्यायादादत्ते विद्यां । इत्यादि। ईप्सितं च रक्षार्थानाम्।।४०१।। रक्षार्थानां धातूनां प्रयोगे ईप्सितमनीप्सितं च तत्कारकमपादानसंज्ञं भवति । यवेभ्यो गा रक्षति । गौ: यवात् रक्षति । गां निवारयतीत्यर्थः ! पापात्पात् भगवान्। रोगकोपाभ्यां निवारयति मन: । अहिभ्य आत्मानं रक्षति । पर्यपाझ्योगे पंचमी ।।४०२ ॥ श्लोकार्थ-बुद्धिमान् मनुष्य संयम के लिये श्रुत को, धर्म के लिये संयम को, मोक्ष के लिये धर्म को एवं धर को दान और भोग के लिये धारण करते हैं ॥१॥ 'तुम्' अर्थ के समान भाववाची प्रत्यय वाले लिंग से चतुर्थी होती है ॥३९९ ॥ आगे भाववाची को कहेंगे। जैसे-पाकाय वजति-पकाने के लिये जाता है, पक्तये व्रजति, पवनाय व्रजति, तुम् प्रत्यय में-पक्तुं व्रजति-पकाने के लिये जाता है । यहाँ पाकाय, पक्तये, पचनाय इन तीनों का अर्थ पक्तु के समान है। यहाँ पाक पक्ति पचन शब्द भाव प्रत्ययांत हैं। अत: चतुर्थी हुई। किस अर्थ में पंचमी विभक्ति होती है ? अपादान अर्थ में पंचमी होती है। अपादान क्या है ? जिससे दूर होता है, डरता है और ग्रहण करता है वह कारक अपादान संज्ञक है।४०० ॥ यथा-वृक्षात्पर्ण पतति-वृक्ष से पत्ता गिरता है। व्याघ्राद् विभेति--व्याघ्र से डरता है। उपाध्यायादादत्ते विद्या-उपाध्याय से विद्या को ग्रहण करता है। रक्षा अर्थ वाले धातु के प्रयोग में ईप्सित और अनीप्सित को अपादान संज्ञा हो जाती है ॥४०१ ॥ यथा—यवेभ्यो गां रक्षति-जौ से गाय की रक्षा करता है। गौ: यवात् रक्षति- अर्थात् गाय को जो खाने से रोकता है। पापात् पातु भगवान्-भगवान पाप से रक्षा करें। रोगकोपाभ्याम् निवारयति मन:--मन को रोग और क्रोध से रोकता है। अहिंभ्य: आत्मानं रक्षति--सों से अपनी रक्षा करता है। परि, अप और आङ् के योग में पंचमी होती है ॥४०२ ।।
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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