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________________ २ कातन्त्ररूपमाला नमो वृषभसेनादि - गौतमान्त्यगणेशिने । मूलोत्तरगुणाढ्याय, सर्वस्मै मुनये नमः ॥३ ॥ गुरुभक्त्या वयं सादर्द्धद्वीपद्वितयवर्त्तिनः । वन्दामहे त्रिसङ्ख्योन - नवकोटिमुनीश्वरान् ॥४ ॥ अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥५ ॥ अथ संज्ञासन्धिः सिद्धो वर्णसमाम्नायः ॥ १ ॥ भावार्थ -- सरस्वती के माहात्म्य से--प्रन्थों के पठन-पाठन रूप स्वाध्याय के प्रभाव से मनुष्य तीन लोक में स्थित जीव, अजीव आदि संपूर्ण तत्त्वों को, ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक, अधोलोक आदि संपूर्ण जगत् के स्वरूप को जान लेता है। आप्तमीमांसा में भी कहा है कि स्याद्वाद केवलज्ञाने सर्वतत्त्वप्रकाशने । भेद: साक्षादसाक्षाच्च ह्यवस्त्वन्य समं भवेत् ॥ स्याद्वाद – आगम और केवलज्ञान दोनों ही संपूर्ण तत्त्व को प्रकाशित करने वाले हैं अंतर केवल इतना ही है कि केवलज्ञान साक्षात् संपूर्ण पदार्थों का ज्ञान करा देता है और श्रुतज्ञान परोक्ष रूप से कुछ-कुछ पर्यायों सहित छहों द्रव्यों का ज्ञान करा देता है। मानस मतिज्ञान और दिव्य श्रुतज्ञान के द्वारा यह जीव परोक्ष रूप से सारे जगत् के स्वरूप को जान लेता है। वृषभसेन को प्रमुख करके अंतिम गणधर श्री गौतम स्वामीपर्यंत चौदह सौ बावन गणधर देवों को मेरा नमस्कार होवे एवं मूल और उत्तर गुणों से सहित सभी मुनियों को मेरा नमस्कार होवे ॥ ३ ॥ अर्थात् वृषभदेव के चौरासी गणधर हैं उनमें प्रमुख गणधर वृषभसेन हैं एवं महावीर स्वामी के १४ गणधरों में प्रथम गणधर गौतम स्वामी हैं। इनमें मध्य बाईस तीर्थकरों के सभी गणधरों की संख्या चौदह सौ बावन मानी गई है। ढाई द्वीप संबंधी तीन कम नव करोण मुनिराजों को हम गुरुभक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं ॥४ ॥ अर्थात् जंबूद्वीप, धातकीखंड ये दो द्वीप और पुष्करद्वीप के बीच में मानुषोत्तर पर्वत के निमित्त 'इधर के आधे पुष्कर द्वीप में ही मनुष्य लोक है अतः आधा पुष्कर द्वीप ऐसे ढाई द्वीपों में एक सौ सत्तर कर्मभूमियाँ है । इन कर्मभूमियों में अधिक से अधिक तीन कम नव करोड़ मुनिराज एक साथ हो सकते हैं यहाँ उन सभी को नमस्कार किया गया है। ज्ञानरूपी अंजन की शलाका से अज्ञान रूपी अंधकार से अंधे हुये प्राणियों के ज्ञानरूपी नेत्रों को जिन्होंने खोल दिया है उन श्री गुरुओं को मेरा नमस्कार होवे ॥५ ॥ अथ संज्ञा संधि वर्णों का समुदाय अनादि काल से सिद्ध है ॥१ ॥
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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