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कषायजय-भावना
जानने वाला राजा वसु असत्य भाषण करने से नरक में गया। अतः संसार में ऐसा कौनसा दुःख है जो माया से प्राप्त नहीं होता है ? अर्थात् माया कषाय के कारण से जीव को सभी प्रकार के दुःख प्राप्त होते हैं।
भावार्थ - राजा वसु धर्म में रत था, सज्जनों के द्वारा पूज्य था, सम्पत्तिशाली था, शुद्ध विचारों का धारक था, न्याय और अन्याय का निर्णय करने में चतुर था तथा सम्पूर्ण शास्त्रों के अर्थ को जानने वाला था। उसने माया कषाय के वशीभूत होकर झूठ बोला और वह मरकर नरक में गया।
राजा वसु की कथा
स्वस्तिकावती नामक एक सुन्दर नगरी थी। उस नगरी में विश्वावसु नामक राजा राज्य करता था। उसकी श्रीमती नामक रानी और वसु नाम का एक पुत्र था। उसी नगर में क्षीरकदम्ब नामक एक उपाध्याय रहता था। उसकी स्त्री का नाम स्वस्तिमती और पुत्र का नाम पर्वत था । क्षीरकदम्ब राजपुत्र वसु, ब्राह्मणपुत्र नारद और अपने पुत्र पर्वत को विद्याध्ययन कराते
थे!
एकदिन वसु के किसी अपराध पर उपाध्याय उसे दंड दे रहे थे। उसी समय स्वस्तिमती ने बीच में पड़कर वसु को बचा लिया। वसु ने गुरुमाता से कहा " हे मात ! आज तुमने मुझे दण्ड से बचाकर उपकृत किया है। कहो, तुम्हें क्या चाहिये ? " स्वस्तिमती ने कहा " है पुत्र ! मुझे जब आवश्यकता होगी, तब मैं तुमसे माँगूंगी।"
एकबार किन्हीं ऋद्धिधारी मुनिराज का उपदेश प्राप्त कर क्षीरकदम्ब ने मुनिदीक्षा ग्रहण कर ली । अतः उनका पद उनके पुत्र पर्वत को मिला। राजा विश्वावसु के दीक्षा ले लेने पर राजसिंहासन वसु को प्राप्त हुआ। वसु ने अपने सिंहासन में स्फटिकमणि के पाये बनवाये। जो भी सिंहासन को दूर से देखता तो ऐसा लगता मानों वह सिंहासन आकाश में ही ठहरा हुआ हो। अतः लोगों में भ्रम फैल गया कि राजा वसु बड़ा ही न्यायप्रिय राजा है तथा उसकी सत्यता के प्रभाव से ही सिंहासन आकाश में ठहरा हुआ है।
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