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कषायजय-भावना *और मदिरा बनाने के साधनों को कदम्ब वन की एक गुफा में फेंक दिया |*
गया। दुर्भाग्यवशात् वह फेंकी हुई मदिरा कुण्डों में संचित हो कर रह गयी। a इधर द्वीपायन मुनि अधिक मास का ध्यान न रहने से बारहवाँ वर्ष
पूर्ण हो चुका है, ऐसा मान कर द्वारिका के निकट आ गये। वे नगर के बाहर पर्वत के निकट मार्ग में आतापन योग धारण करके स्थित हो गये।
उसी दिन वनक्रीड़ा के कारण थके हुए तथा प्यास से पीड़ित शंभव आदि कुमारों ने यह जल है ऐसा जानकर कदम्ब वन में फेंकी हई मदिरा
को पी लिया। वे सब कुमार नशे के कारण असम्बद्ध बड़बड़ाते हुए नगर की * Sil ओर आ रहे थे। उससमय उनकी दृष्टि आतापन योग में स्थित द्वीपायन * मुनि पर गयी। ये नही द्वीपायन हैं, जिनके कारण हमारी नगरी का नाश |* * होगा शादीचार भरत कुमारों मुनिराज को साधनों से मारना प्रारंभ *
किया। वे मुनिराज को तबतक मारते रहे, जबतक कि वे गिर न पड़े। लोगों * ने यह सूचना बलभद्र और श्रीकृष्ण को दी। सूचना को सुनकर उन्होंने *
उसी समय मान लिया कि द्वारिका का प्रलयकाल आ चुका है। फिर भी वे | | मुनिराज के समीप गये। विनयपूर्वक उन्होंने याचना की। उन्होंने कहा " हे | R मुने ! चिरकाल से जिसकी आपने रक्षा की है, क्षमा ही जिसकी जड़ है, जो
मोक्ष का साधन है ऐसे तप की आप रक्षा कीजिये। मूर्ख कुमारों ने जो | अपराध किया है, उन्हें क्षमा प्रदान कर दीजिये!" कृष्ण और बलराम के
अनेक बार निवेदन करने पर भी मुनिराज का क्रोध शान्त नहीं हुआ। | *जिनके नेत्र लाल हो रहे थे, जिनका मुख विषम हो रहा था ऐसे मुनिराज ने
दो अंगुलियाँ उठा कर संकेत किया कि मात्र तुम दोनों को नहीं जलाऊंगा। "इनका क्रोध दूर करना संभव नहीं है " ऐसा जानकर कृष्णादिक नगर | में आये। द्वारिका भस्म होगी ऐसा जानकर अनेक लोगों ने दीक्षा ग्रहण कर नगर का त्याग कर दिया। द्वीपायन मुनि क्रोधसहित मरकर अग्निकुमार
जाति के भवनवासी देव हुए। विभंगावधि ज्ञान के द्वारा पूर्व वैर का स्मरण | E करके उन्होंने द्वारिका को भस्म कर दिया।
तात्पर्य यह है कि महातपस्वी द्वीपायन मुनि को घोर तप करने के | * कारण मोक्ष प्राप्त होना चाहिये था परन्तु वे क्रोध के कारण भवनवासी देव | BEI बने। अतः क्रोध का पूर्णतः त्याग कर देना चाहिये। 然来来来来来来来来来法来来来来来来来来来来来来来
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