________________
(
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज १२ ) विशेष – जो गाथाएं भाष्य गाथाओं के साथ पाई जाती हैं, अर्थात् जिन गाथाओं का स्वरूप स्पष्ट करनेवाली भाव्यरुप गाथाएं हैं, उन्हें सभाष्य गाथा कहा गया है - "सह भाष्यगाथाभिवर्तन्ते इति सभाष्यगाथा इति सिद्धम् " ( पृ० ३३ ) यहाँ इक्कीस गाथाओं को सूत्र गाथा माना गया है, क्योंकि उनमें सूत्र का यह लक्षण पाया जाता है ।
अर्थस्य सूचनात् सम्यक सूतेनार्थस्य सूरिणा । सूत्रमुक्तमनल्पार्थं सूत्रकारेण तत्वतः ॥
जो अच्छी तरह अर्थ को सूचित करे, प्रर्थं को जन्म दे, उस महान अर्थों से गर्भित सूचना को सूत्रकार प्राचार्य ने तत्वतः सूत्र कहा है ।
संकामण - श्रवण - किट्टी - खवरणाए एक्कवीसं तु । पदाओ सुत्तगाहाओ सुरा प्रष्णा भासगाहाओ ॥ १०॥
(२) चरित्र मोह की क्षपणा नामक अर्थाधिकार के अंतर्गत संक्रमण सम्बन्धो चार गाथा, श्रपवर्तना विषयक तीन गाथा, कृष्टि संबंधी दस गाथा, कृष्टि क्षपणा संबंधी चार गाथा हैं । ये सब मिलाकर इक्कीस सूत्र गाथा है । अन्य भाष्यगाथा हैं। उन्हें सुनो ।
खोणमोहगाहा एक्का घेत्तव्वा । 'पट्टवए' द्धि भणिदे चत्तारि पट्टणगाहाओ घेत्तव्वा । 'सत्त ेदा गाहाओ' त्ति भणिदे सत्तेदा गाहाश्रो सुत्तगाहाम्रो ण होंति ।
२. ताम्रो एक्कवीस सभास- गाहाओ कत्य होंति त्ति भणिदे भाइ संकामण प्रवट्टण-किट्टी-खवणाए होंति । तं जहा, संकमणाए चत्तारि ४, भोवट्टणाए तिष्णि ३, किट्टीए दस १०, खवणाए चत्तारि ४ गाहाओ होंति । एवमेदास्रो एक्कदो कदे एक्कवीस भासगाहाओ २१ । एदानो सुत्तगाहाओ ।