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मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
साम.... .... . ni कष्ट देती हैं; किन्तु उनके अभाव में ये निस्तेज हो जाने से नोकषाय अथवा अकषाय कही गई हैं।
कवायपाहुड ग्रंथ के चतुः अनुयोगद्वार में गुणधर भट्टारक ने लिखा है :
कोधो चउन्विहो रुत्तो माणो वि चउध्यिहो भवे । माया चउन्विहा बुता लोभो विय चउन्विहो ॥७॥
__क्रोध चार प्रकार का कहा गया है। मान भी चार प्रकार का कहा गया है। माया चार प्रकार की कही गई है । लोभ भी चार प्रकार का कहा गया है।
रणग-पुढवि-बालुमोदय-ई-सरिसो चउब्धिहो कोहो ।
सेल-घण-अद्वि-दारुल-लदा समाणो हवे माणो ॥७॥ •b नग राजि अर्थात पर्वत की रेखा, पृथ्वी की रेखा, बालुका की रेखा तथा जल की रेखा समान क्रोध चार प्रकार है ।
+ शैलघन अर्थात् शिला स्तंभ, अस्थि, दारु (काष्ठ) लता के समान मान चार प्रकार कहा गया है 1
गोम्मटसार जीवकांड में क्रोध का वालुका की रेखा के समान लल्लेख के स्थान में 'धूलि रेखा' का बदाहरस दिया है। राजवार्तिक में अकलंक स्वामी ने गुणधर आचार्य के समान ही क्रोध को चार प्रकार कहा है " कोधः ) स चतुः प्रकारः पर्वत-पृथ्वी-वास्नुकोदक-राजितुल्यः" (अ. ८, सु. ६. पू. ३०५)। मान भी उसी प्रकार चतुविष कहा है, "शैलस्तंभास्थि-दाम-लतासमानश्चतुर्विधः'। जोवकांड गोम्मटसार में मान का दृप्रान्त'लता' के स्थान में 'बेत' दिया गया है ।
दीर्घ काल पर्यन्त टिकने वाला क्रोध पर्वत की रेखा सहश कहा है । उसकी अपेक्षा न्यूनता पृथ्वी रेखा, बालुका रेखा तथा जल की रेखा सदश क्रोध में पाई जासी है। आचार्य नेमिचंद सिद्धान्तचक्रवर्ती ने लिखा है कि उक्त चार प्रकार के कोध से क्रमशः नरक, तिबंध, मनुष्य सथा देव गति में उत्पाद होता है। (गी. जी. २८५)
ओ मान दीर्घकाल तक रहता है, वह शैलघन सदश है। वह नरक गति का उत्पादक कहा गया है । 'अस्थि, काठ तथा बेत समान