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________________ तथा प्राचार्य धरसेन विनयधर श्रीदत्त, शिवदत्त, बहरत्त, अहंद्र बलि और माधनंदि मुनीश्वरों के समान अंग-पूर्व के एकदेश के ज्ञाता थे। ये नाम क्रमबद्ध परंपरागत न होने से तिलोयपएसत्ति, हरिवंशपुराण, उत्तर पुराण आदि ग्रंथों में नहीं पाये जाते हैं । प्रतीत होता है कि इनका मुनीश्वरों के समय में कोई विशेष उल्लेखनीय अन्तर न रहने से इनका पृथक रूपसे काल नहीं कहा गया है। उपरोक्त गुरु-परंपर। के कथन के प्रकाश में यह बात ज्ञात होती है. कि सर्वज्ञ भगवान महावीर तीर्थकर की दिव्यध्वनि का अंश गुरमधर आचार्य को अवमत था। अत: गुणधर नाचा रचित कपायपादुड सूत्र का सवेज वारसी से परंपरागत सबन्ध स्वीकार करना होगा । इस दृष्टि से इस मंच की मुमुक्षु जगन के मध्य अत्यन्त पूज्य स्थिति हो जाती है। मार्गदर्शक :- आचार्य श्री. सुविधिसागर जी महाराज, सीने गणधर श्राचार्य का समय --बिलोकसार में लिखा है. कि वीरनिर्वाण के दहसी पाँच वर्ष तथा पांच माह व्यतीत होने पर शक पर शक नामका राजा उत्पन्न हुआ । इसके अनंतर तीन सौ चौरानवे वर्ष सात माह बाद कल्की हुधा । । इस गाथा की टीका में माघवचंद्र विद्यदेव कहते हैं,-"श्रीवीरनाथनिवृत्तेः सकाशात पंचोत्तरषट्शतवर्षाणि (६०५) पंच (५) माम युतानि गत्वा पश्चात विक्रमांकशकराजो जायते "। ग्रहां शक राजा का अर्थ विक्रम राजा किया गया है । इस कथन के प्रकाश में अंग-पूर्व के अंश के पाठो मुनियों का सद्भाव विक्रम संवत् ६३ - ६८५ = ७८ अाता है । विक्रम संवत् के सत्तावन वर्ष बाद ईसवी सन प्रारंभ होता है । अतः ४८ - ५७ - २१ वर्ष ईसा के पश्चात प्राचारांगी लोहाचार्य हुए। उनके समीप ही गुणधर पाचाय का समय अनुमानित होने से जनका काल ईसवी की प्रथम शतानदी का पूर्वाध होना चाहिये । __ दिगम्बर आम्नाय पर श्रद्धा करने वालों की दृष्टि में वीरनिवारण काल विकम से ६०५ वर्ष पांच माह पूर्व मानने पर इस विक्रम संवत् २.२५ में ६०५ + २०२५ २६३० होगा । डाक्टर जैकोबी ने लिखा है कि श्व संप्रदाय के अनुसार वीरनिर्वाण विक्रम ये चार सौ सत्तर वर्ष पूर्व हुआ था तथा दिगम्बरों की परंपरा के अनुसार यह छह सौ पांच वर्ष र परण-हस्सय-बस्स पणमास जुदं गमिय बीर-पिवृइदो। सगराजो तो कक्की चदु-रणव-तिय-महियसग-मास ।। ८५० ॥
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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