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________________ बाद प्रभु .:नाटयाला ख... बुडाणा शंका-सर्वार्थ सिद्धि में यह शंका की गई है, कि जिस योग के द्वारा पुण्य का पालव होता है, उसी के द्वारा क्या पाप कर्म का आस्रव होता है ? समाधान-शुभ योग के द्वारा पुण्य का पास्रव होता है। मशुभ योग के द्वारा पाप का प्रामय होता है । शुभ परिणामों से रचित योग शुभ है और अशुभ परिणाम से रचित योग अशुभ है। " शुभ परिणामनितो योगः शुभः अशुभपरिणाम-निवृत्तश्चाशुभः " । प्रवचनसार टोका, में मोह तथा द्वेषमय परिणामों को अनुम :- . कहा है । रामकियदि अशक्तशती सुथुक्तिसाही वाशशुभ है और यदि वह विशुद्धता सहित है, तो वह शुभ है । शुभ परिणाम को पुण्य रूप पुद्गल के बंध का कारण होने से पुण्य कहा है। पाप रूप पुद्गल के बंध का कारण होंने ये अशुभ परिणाम को पाप कहा है।- "सत्र पुण्य-पुद्गल बंध कारणत्वात् शुभ-परिणामः पुण्यः पाप-पुद्गल-बंधकारणत्वावशुभ-परिणामः पापं"-- प्रव. सा. टीका गाथा १८१, पृ. १२२) दोनों उपयोग पर द्रव्य के संयोग में कारण रूप होने से | अशुद्ध हैं। यदि उपयोग मंक्लेश भाव कप उपराग युक्त है, तो यह अशुभ । है तथा यदि वह विशुद्ध भाव रूप पराग युक्त है तो उसे शुभ कहते हैं। । अमृतचंद्रसूरि ने अशुद्ध की व्याख्या इन शब्दों में की है;" उपयोगो हि । जीवस्य परद्रव्यसंयोगकारणमशुद: । स तु विशुद्धि-संक्लेशरूपोपरागव. शान शुभाशुभत्वेनोपात्त-दुविध्यः" । (प्रय, सार. गाथा १५६ टोका) "यदा तु द्विविधस्याप्यस्याशदस्याभावः क्रियते तदा खलूपयोग: शद्ध एवावतिष्ठते, स पुनरकारसमेत्र परद्रव्यसंयोगस्य " जब शुभ तथ। अशुभम्प अशुद्ध भाय का प्रभाव होता है, तब शुद्ध उपयोग होता है । वह शुद्ध उपयोग परदन्य के संयोग का कारण नहीं होता है। __ यह शुद्धोपयोग मुनिराज के ही पाया जाता है। प्रवचनसार में कहा है : सुविदिद-पदस्थसुलो मंजम-सव-मंजुदो विगदरायो । ममणो ममसुहृदुक्खो मणिदो सुद्धोवोगो सि ॥ १५ ॥ सूत्रार्थज्ञान के द्वारा वस्तु का स्वरूप जानने वाला, संयम तथा ) तप संयुक्त, रागरहित, सुस्व और दुःख में समान भाव युक्त श्रमम् को । शुद्धोपयोग कहा है।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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