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________________ श्रद्रप्रभु दिन पाटगाला खा.... ज बलडाणा { २४३ ) / अधातिया कर्मों की क्षपणा के बिना क्षपणाधिकार पूर्णता को नहीं प्राप्त होता है। इस कारण क्षपणाधिकार से संबंधित होने से चूलिका रूप से यह पश्चिम स्कन्धाधिकार कहा है। । प्रायु के अंतर्मुहूतं शेष रहने पर सयोगकेवली आजित करण करने के उपरान्त केवलि-समुद्घात करते हैं "अंतोमुत्तगे पाउगे ऐसे तदो प्रावज्जिदकरणे कदे तदो केवलिसमुग्घादं करेदि" । ( २२७७ ) केबली समुद्घात के लिए की गई आवश्यक क्रिया आवर्जित करणा है। "केवलिसमुग्घादस्स अहिमुखी भावो प्रावज्जिदकरणनिदिक्षिणदेआचार्महापर्यन्त आब जितकरण के बिना केवलि समुद्धात क्रिया के प्रति अभिमुखपना नहीं होता है। इस करण के पश्चात् केवली अघातिया कर्मों की स्थिति के समोकरणार्थ समुद्रघात क्रिया करते हैं । शंका-"को केवलिसमुग्धादोगाम" ? केवलिसमुद्धात किसे कहते हैं ? समाधान-"उद्गगमनमुद्धघातः जीचप्रदेशानां विसर्पणम्" जीब । के प्रदेशों का विस्तार उद्गगमन को उद्घात कहते हैं । "समीचीन उद्धातः समुद्धातः ) केवलिनां समुद्रघात: केवलिसमुद्रधातः । समीचीन उद्घात्त को समुद्घात कहते हैं । केवलियों का समुद्धात केवलि समुद्रघात है। "अघातिकर्म-स्थिति-समीकरणाथ केवलि जीवप्रदेश...।। समयाविरोधेन उमस्तियंक विमर्पणं केवलिसमुद्घात:"1 अघातिया कर्मों की स्थितियों में समानता की प्रतिछापना हेतु कैबली की आत्मा के प्रदेशों का आगम के अविरोध रूप से उवं, अधः तथा तिर्यक रूप से विस्तार केवली समुद्रघात है। यह । केवली समुद्वघात दंड, कचाट, प्रतर तथा लोकपूरण के भेद से चार अवस्था रूप है। "पढम समए दंडं करेदि" - "वे प्रथम समय में दंड समुद्धात को करते हैं । सयोगी जिन पदमासन से अथवा खड्गासन से पूर्व अथवा
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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