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________________ श्री. सविधिसागर जी महाराज ( २२४ ) हानिरूप अनुभाग का वेदन करता है। अनंतर समय में शेष कर्मों के अनुभाग भजनीय है। विशेष--"जसणाममुच्चागोदं च अणंतगुणाए सेढीए वेददि त्ति सादावेदणीयं पि अणंतगुणाए सेढीए वेदेदि ति"-यशःकी ति नाम कर्म तथा उच्च गोत्र को यह क्षपक अणंतगुण श्रेणी रूप से वेदन करता है। यह सातावेदनीय को भी अनंतगुण श्रेणी रूप से वेदन करता है। शंका-नाम कम की शेष प्रकृतियों का किस प्रकार वेदन करता है, "सेसानो णामाप्रो कधं वेदयदि" ? (२२२७ ) ममाधानार्थी ओशवायचों का यशोति नाम कर्म परिणाम प्रत्ययिक ( परिणाम-पच्चइयं ) है । जो अशुभ परिणाम प्रत्ययिक अस्थिर अशुभ आदि प्रकृतियां हैं, उन्हें अनंतगुणहीन श्रेणी रूप से वेदन करता है। " जो शुभ परिणाम प्रत्ययिक सुभग, प्रादेय आदि शुभ नाम कम की प्रकृतियां हैं, उनको अनंतगुणश्रेणी रूप से यह क्षपक वेदन करता है। अन्तराय कर्म की सर्वप्रकृतियों को अनंतगुणित होन श्रेणी के रूप में वेदन करता है । भवोपग्रहिक अर्थात् भवविधा को नाम कर्म को प्रकृतियों का छह प्रकार की वृद्धि और हानि के द्वारा अनुभागोदय भजनीय है "भवोपग्गहिया प्रो णामाग्रो छब्धिहाए वड्ढोए छबिहाए हाणीए भजिदव्यागो” (२२२७ - केवलज्ञानावरणीय, केवल दर्शनावरणीय कर्म को अनंतगुणित हीन श्रेणी के रूप में वेदन करता है। शेष चार ज्ञानावरणीय को यदि सर्व धातिया रूप में वेदन करता है, तो नियम से अनंतगुणित होन श्रणी रूप से वेदन करता है। यदि देशघाति रूप से वेदन करता है, तो यहां पर उनका अनुभाग उदय छह प्रकार की वृद्धि तथा हानिरूप से भजनीय हैं। इस प्रकार दर्शनावरणीय में जानना चाहिये।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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