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मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
इद्विस्म वा पढमदाए संजम पडिवज्जमाणस्साणियट्टिकरण-संभवा. भावादो' (१६९८) । संयमासंयम लब्धि में दो करण कहे हैं । - अनादि मिथ्यादृष्टि के उपशम सम्यक्त्व के साथ संयम के प्राप्त होते समय तीनों करण होते हैं, किन्तु यहां उसकी विवक्षा नहीं है, क्योंकि वह दर्शनमोह को उपशामना में अंतर्भूत हो जाता है। • चारित्रलब्धि को प्राप्त होने वाले जीवों के सत्प्ररुपणा, द्रव्य, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भागाभाग और अल्पबहुत्व ये पाठ अनुयोग द्वार हैं । संयमलब्धि के दो भेद हैं । (१) जघन्य (२) उत्कृष्ट संयमलब्धि रुप भेद हैं । कषायों के तीव्र अनुभागोदय जनित मंद विशुद्धता युक्त जघन्य संयम लब्धि है। कषायों के मन्दत र अनुभागोदय जनित विपुल विशुद्धता सहित उत्कृष्ट संयम लब्धि है।
शंकाक्षीण कषाय तथा उपशांतकषाय गुणस्थानों की सर्वोत्कृष्ट चारित्र लब्धि को यहां क्यों नहीं ग्रहण किया ?
___ समाधान-यहां प्रकरणवश सामायिक, छेदोपस्थापना संयम वालों की उत्कृष्ट चारित्र लब्धि को ग्रहण किया है।
जघन्य संयम लधि सर्व संक्लिष्ट तथा अनंतर समय में मिथ्यात्व को प्राप्त होने वाले अंतिम समयवर्ती संयमी के होती है। • उत्कृष्ट संयम लब्धि सर्वविशुद्ध स्वस्थान संयत के होती है। सर्वोत्कृष्ट संयम लब्धि उपशांतमोह तथा क्षीण मोह के होती है, जिनके यथाख्यात संयमलब्धि पाई जाती है ।
• संयम लब्धि स्थान के (१) प्रतिपात स्थान (२) उत्पादक स्थान (३) लब्धि स्थान ये तीन भेद हैं