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________________ घातिसंज्ञा के देशपाती और सर्वघाती ये दो भेद हैं । स्थान संज्ञा 'लता, दारु, अस्थि, शैल रुप स्वभाव के भेद से चार प्रकार को कही गई है। १ घाति संज्ञा तथा स्थान संज्ञा का एक साथ कथन किया गया है, क्योंकि ऐसा न करने से ग्रंय. का अनावश्यक विस्तार हो जाता । ...: . मिथ्यात्व, अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण, क्रोच मान माया और लोभ रूप बारह कषायों की अनुभाग-उदी रणा सर्वघाती है। वह हिस्थानिक, त्रिस्थानिक और चतुःस्थानिक है । "मिच्छत्त-आरसकसायाणुभाग-उदीरणा सव्वघादी; दुढाणिया तिहाणिया घउट्टाणिया वा" (१४९१) मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधासागर जी म्हारा - सम्यग्मिथ्यात्व की अनुभाग उदीरणा सर्वघाती तथा द्विस्थानीय है। २ सम्यग्मिथ्यात्व के द्वारा जीव के सम्यक्त्व गुण का निमूल बिनाश होता है, इससे मिथ्यात्व को उदीरणा के समान ही इसकी उदीरणा है। यहां द्विस्थानि। कहा है, क्योंकि द्विस्थानिकत्व को छोड़कर प्रकारान्तर असंभव है। . ३ आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने सम्यग्मिथ्यात्व को जात्यंतर सर्वघाती कहा है। १ तानो दो वि सण्णाग्रो एयपवट्टयेणेत्र वत्तइस्सामो पुध पुत्र परुवगाए गंथगउरवप्पसंगादो (१४९१) मिच्छतोदीरणाए इव सम्मामिच्छत्तोदोरणाए वि सम्मत्तसपिणदजीवगुणस्स णिम्मूलविणासदसणादो ( १४९२) . . सम्मामिच्छुदयेण जरांतरसवधादि-कज्जेण । जब सम्म मिच्छ पि य सम्मिस्सो होदि परिणामो ॥२१, गो.जी.॥
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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