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________________ निरुपण (१) प्रमाणानुगम (२) स्वामित्व ( ३) एक जीवको अपेक्षा काल ( ४ ) अंतर (५) नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय (६ ) काल ( ७ ) अंतर (८) सन्निकर्ष ( ९ ) अल्पबहुत्व १०) भुजाकार (११) पदनिक्षेप (१२) स्थान (१३) वृद्धि इनके द्वारा किया गया है । ( १४१६ ) अनुभाग उदीरणा गाथा ६० में यह पद पाया है "को व के य अणुभागे ति" कौन जीव किस अनुभाग में प्रवेश करता है ? इस कारण अनुभाग उदीरणा पर प्रकाश डालना उचितचचि श्री सुविधासागर जी महाराज १ प्रयोग ( परिणाम विशेष ) के द्वारा स्पर्वक, वर्गणा और अविभाग प्रतिच्छेद रूप अनंत भेद युक्त अनुभाग का अपकर्षण करके तथा अनंतगुणहीन बनाकर जो स्पर्धक उदय में दिए जाते हैं, उसको अनुभाग उदीरणा कहते हैं । जिस प्रकृतिका जो आदि स्पर्धक है, वह उदीरपा के लिए अपकर्षित नहीं किया जा सकता । "तत्थ जं जिस्से आदिफट्टयं तं ण प्रोकड्डिज्जदि' । इस प्रकार दो प्रादि अनंत स्पर्धक उदोरणा के लिए अपकर्षित नहीं किए जा सकते हैं । 'एवमणताणि फड्डयाणि ण ओकड्डिजति' ( १४७६ } प्रश्न- उदीरणा के लिए अयोग्य स्पर्धक 'केत्तियाणि ?' कितने हैं ? १ अणुभागा मूलुत्तरपयडीय मणंतभेयभिषण फड्डय-बग्गणाविभाग-पडिच्छेदसरुवा पयोगेण परिणामविसेसेण प्रोकड्डियूण अणंतगुणहीणसरुवेण जमुदये दिज्जति सा उदीरणा शाम । कुदो ? अपक्वपाचनमुदीरणे ति वचनात् { १४७९ )
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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