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तयार और मेरा हो
( ४३ ) At Hit बंध, 'संकामेइ कदि वा' के द्वारा प्रकृति संक्रमण, स्थिति संक्रम तथा अनुभाग संक्रम, 'गुणहीणं वा गुणविसिट्ठ' के प्रदेश संक्रम सूचित किए गए हैं।
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज 'सो पुण पयडि-द्विदि-अणुमाग-पदेसबंधों बहुसो परुविदो'यह प्रकृति स्थिति, अनुभाग तथा प्रदेशबंध बहुत बार प्ररुपण किया गया है।
___ इन बंधों का महाबंध के अनुसार बीरसेनस्वामी ने जयधवला टीका में विवेचन किया है। वे कहते हैं "महाबंधानुसारेण एस्थ पयडि-ट्ठिदि-अणुभाग-पदेसबंधेसु विहासिय समत्त सु तदो बंधो समत्तो होई' (९५७)
संक्रम अनुयोगद्वार एक कर्म प्रकृति के प्रदेशों को अन्य प्रकृति रुप परिणमन कराने को संक्रमण कहा गया है। 'संकमस्स पंचविहो उबक्कमो, प्राणुपुची, णाम, पमाणं, वत्तव्वदा, प्रत्थाहियारो चेदि'--संक्रम का उपक्रम पंचविध है । आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता तथा अधिकार उनके नाम है।
नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को अपेक्षा संक्रमण का छह प्रकार निक्षेप हुआ है।
नयों की अपेक्षा प्रकाश डालते हुए चूर्णिकार कहते हैं :णेगमो सब्वे संकमे इच्छइ । संगह-ववहारा काल संकममवर्णेति उजुसुदो एदं च टवणं च अवणेइ । सहस्स णामं भावो य । नैगमनय सर्व संक्रमों को स्वीकार करता है। संग्रह और व्यवहारनय काल संक्रम को छोड़ देता है । ऋजुसूत्रनय काल एवं स्थापना संक्रम को छोड़ता है। शब्द नाम और भाव संक्रम को ही विषय करते हैं।