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________________ को वेद कहा गया है । इस दृष्टि से यह वेदांश या वेदांग रूप है महर्षि जिनसेन का कथन है। श्रुतं सुविहितं वेदो द्वादशांगमकल्मषम् । हिंसोपदेशि यद्वाक्यं न वेदोऽसौ कृताम्दाकं ।महाराही सुविधासागर जी महाराज ___ यह सुरचित्त द्वादशांग वेद है। यह किसी प्रकार के दोष से दूषित नहीं है । जोजीव वध का निरूपण करने वाली रचना है, यह वेद नहीं है। वह तो कृतान्त की प्राणी है। यह भी ज्ञातव्य है, कि षटखंडागम सूत्र की महान कृति की रचना होने पर ज्येष्ठ सुदी पंचमी को वैभवपूर्वक श्रुस की पूजा की गई थी तथा उस समय से श्रवपंचमी नाम से सरस्वती की समाराधना का पर्व प्रारंभ हुआ । गुणधर स्वामी कृप इस कषायपाहुड सूत्र में केवल २३३ गाथाए हैं। पटखंडागम महाशास्त्र है । उसके छठवें ख. महाबंध की रचना चालीस हजार श्लोक प्रमाण है । शेष पांच खराक्ष लगभग छह श्रष्ठ हजार श्लोक प्रमाण होंगे । षट्खंडागम की रचना होने पर देवताओं ने इोत्सव मनाया था । कसायपाहुख सूत्र के विषय में ऐसा इतिहास नहीं है | यह कसायपाहुह अहेतुवाद, स्वयं प्रमाण स्वरूप प्रागम होने से प्रामाण्यता को प्राप्त है। यह रचना अत्यन्त कठिन और दुरूह होते हुए भी स्वाध्याय करने वाली आत्माओं को विशुद्धिप्रद है। इसे जिनेन्द्रवासी का सातान् अंश मानकर विनय सहित पढ़ने तथा सथा सुनने वाले भव्य जीव का कल्याण होगा। आत्म कल्याण के प्रेमी, भद्र परिणामी भव्यों के लिए ऐसी रचनाएँ अमृतोपम है। मंगलाचरण का अभाव कषायपाहुड सूत्र ग्रंथ का परिशीलन करते समय एक विशेष बात दृष्टिगोचर होती है, कि अन्य ग्रंथों की परंपरा के अनुसार इस शास्त्र में मंगल रचना न करके गुणधर स्वामी ने एक नवीन दृष्टि प्रदान की है। उनका अनुगमन कर यतिवृषभ स्थविर ने चूर्सिसूत्रों के प्रारंभ में मंगल नहीं किया है । शंका--- जयघषला में कहा है, गुणधर भट्टारक ने गाया सूत्रों के आदि में तथा यतिवृषभ स्थविर ने घरिणसूत्रों के कादि में मंगल क्यों नहीं किया?
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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