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________________ मार्गदर्शक ६- आचार्य श्री सुविहिासागर जी महाराज नोकषाय दोष हैं; क्योंकि इस प्रकार का लोक व्यवहार देखा जाता है। शंका-ऋजुसूत्र नय की अपेक्षा क्रोध द्वेष रूप है, लोभ पेज्ज है, यह ठीक है, किन्तु भाम और माया न द्वेष हैं, न पेज यह कैसे सुसंगत कहा जायगा ? समाधान-अजुसूत्र नय को अपेक्षा मान और माया दोष नहीं हैं, क्योंकि उनसे अंग को संताप नहीं प्राप्त होता है । उनसे प्रानन्द की उत्पत्ति नहीं होने से वे पेज भी नहीं है। शब्द नय की दृष्टि में क्रोध, मान, माया और लोभ कर्मों के प्रास्रव के कारण होने से तथा उभय लोक में दोष का कारण होने से दोषरूप कहे गए हैं। यह उपयोगी पद्य है : क्रोधात्नौतिविनाश मानाद्विनयोपघातमाप्नोति । शाठ्यात्प्रत्ययहानि सर्वगुणविनाशको लोभः ।। क्रोध से प्रेमभाव का क्षय होता है। अभिमान से विनय को क्षति होती है। शठता अर्थात् कपटवृत्ति से विश्वास नहीं किया जाता है । लोभ के द्वारा समस्त गुणों का नाश होता है। क्रोध, मान और माया ये तीनों पेज्ज नहीं है, क्योंकि इनसे जीव को संतोष और प्रानन्द की प्राप्ति नहीं होती। लोभ कचित् पेज्ज है, क्योंकि रत्नत्रय के साधन विषयक लोभ से स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति देखी जाती है-"तिरयणसाहण-विसय-लोहादो सग्गापवग्गाणमुप्पत्ति-दसणादो" । शेष पदार्थ संबंधी लोभ पेज्ज नहीं है, क्योंकि उससे पाप की उत्पत्ति देखी जाती है । मैगम नय की अपेक्षा जीव किसी काल या देश में किसी जोव में द्वष युक्त होता है, कभी अजीव में द्वेषभाव धारण करता है।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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