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________________ ( २४ ) इस गाथा में कहे गए प्रश्नों का समाधान भट्टारक गुणधरने नहीं किया है । यतिवृषभ आचार्य ने उनका उत्तर इस प्रकार दिया है । (१) गम और संको-प्रोार्यक्रधिसागर जी महार मान द्वेष रूप हैं तथा माया और लोभ प्रेयरूप हैं । व्यवहार नय की दृष्टि से क्रोध, मान और माया द्वेष रूप हैं तथा केवल लोभ कपाय ही द्वेष रूप है । ऋजुसूत्र नय की अपेक्षा केवल क्रोध द्वेष रूप है । मान न द्वेष है, न प्रेय है । इसी प्रकार माया भी न द्वेष है, न प्रेय हैं । लोभ प्रेयरूप है | शब्द नय की अपेक्षा क्रोध द्वेष, माया द्वेष है तथा लोभ भी द्वेष है । क्रोध, मान तथा माया पेज्ज नहीं हैं, किन्तु लोभ कथचित् पेज्ज है । उपरोक्त प्ररूपण को पढ़कर जिज्ञासु सोचता है कि कषायों को किसी नय से प्रिय तो किसी नय से श्रप्रिय-द्वेष रूप कहने में क्या कोई कारण भी है या नहीं ? इस दृष्टि को ध्यान में रखते हुए आचार्य बोरसेन ने इस प्रकार स्पष्टीकरण किया है। वे लिखते हैं, क्रोध द्वेष रूप है, क्योंकि क्रोध के करने से शरीर में संताप होता है । देह कंपित होती हैं | कान्ति बिगड़ जाती है । नेत्रों के समक्ष अंधकार छा जाता है । कान बधिर हो जाते हैं । मुख से शब्द नहीं निकलता । स्मरण शक्ति लुप्त हो जाती है । क्रोधो व्यक्ति अपने माता पिता आदि की हत्या कर बैठता है । क्रोध समस्त श्रनर्थो का कारण है । १ गम-संगहाणं कोहो दोसो, माणो दोसो माया पेज्ज, लोही पेज्जं । ववहारणयस्स कोहो दोसो, माणो दोसो, माया दोसो, लोहो पेज्जं । उजुसुदस्स कोहो दोसो, माणो णो-दोसी, णोपेज्जं । माया णो-दोसो, णो-पेज्जं । लोहो पेज्जं ।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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