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________________ ♦ [ गा० १४० - - कत्तिगेया पेक्खा - एक्खे चदु पाणा वि-ति- चउरिंदिय असविण सण्णीणं । छह सत्त अड्डे वयं दह पुण्णाणं कमे पाणा ॥ १४० ॥ दुविहाणमपुण्णाणं गि- वि-ति- चउरक्ख- अंतिम दुगाणं । तिय चउ पण छह सत्त य कमेण पाणा मुणेयचा ॥ १४१ ॥ वि-ति चउरक्खा जीवा हवंति नियमेण कम्म-भूमीसु । चरिमे दीवे अद्धे चरम - समुद्दे व सबे ॥ १४२ ॥ माणुस - खित्तस्स वहिं चरिमे दीवस्स अद्धयं जॉब | 5५ कितिरिच्या हिमनद विरिहिं हरिच्छा ॥ १४३ ॥ लवणो कालोए अंतिम - जलहिम्मि जलयरां संति । सेस-समुद्देसु पुणो ण जलयरा संति नियमेण ॥ १४४ ॥ खरभाव-पंकमाए भावण देवाण होंति भवणाणि । वितर- देवाण तहा दुहं पि य तिरिय लोयमिमं ॥ १४५ ॥ जोsसियाण विमाणा रज्ज-मित्ते वि तिरिय लोए वि" । कप्प-सुरा उम्मिं य अह-लोए होंति" णेरइया ॥ १४६ ॥ बादरें - पजत्ति जुदा घण आवलिया असंख-भागा दु । किंचूर्ण-लोय-मित्ता तेऊ बाऊ जहा कमसो ॥ १४७ ॥ पुढेवी-तोय-सरीरा पत्या वि य पट्टिया इयरा । होत असंखा सेढी पुण्णापुण्णा य तह य तसा ॥ १४८ ॥ बादर-द्धि - अण्णा असंख - लोया हवंति पत्तेया । तह य अण्णा सुदुमा पुष्णा वि य संख-गुण-गणिया ॥ १४९ ॥ सिद्धा संति अणंता सिद्धाहिंतो" अनंत-गुण-गुणिया । होंति णिगोदा जीवा भागमगतं अभवा य ॥ १५० ॥ सम्मुच्छिम हुमणुया सेढियसंखिज-भाग- मित्ता हु । भज मणुया सवे संखिजा होंति नियमेण ॥ १५१ ॥ ५ २ ग इग ६ लसग सन्वथि षि । 1 । १ य सतह | ३ ल चरिम । ४ ग चरमे । ५ ब जाम । ७ व हिमवदितिरियेहि । ८ च अंतम । ९ लग जलचरा । १० ग चिंतर । ११ लमसग तिरियलोए वि । ३२ च - लए मि १३लग उहि स उददि । १४ घ हुंति । १५ व स्थितिव्वं ॥ बादर इत्यादि । १६ बग बादर | ३७ सग किंचूणा । १८ग पुत्रीय तोय | १९ ब हुनि २० वायर । २१ मसग द्विपुष्णा । २२ म सिहिंतो । २३ व समुच्छिमा लमस सम्सुच्छिया, ग समुच्छिया, २४ व सेडिम | २५ व संखा ॥ देवा वि इत्यादि । । ! 1 !
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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