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________________ ३९६ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा तथा साधुसुमत्यादिकीर्तिना कृतप्रार्थना सार्थीकृता समर्थेन शुभचन्द्रेण सूरिणा ॥ ९ ॥ भट्टारकपदाधीशा भूलर्सचे विवराः । रमावीरेन्दु चिद्रूपगुरवो हि गणेशिनः ॥ १० ॥ लक्ष्मीचन्द्रगुरुः स्वामी शिष्यस्तस्य सुधीयशाः । वृतिविस्तारिता तेन श्रीशुभेन्दुप्रसादतः ॥ ११ ॥ [ गा० ४९१ इति श्री स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा टीकायां त्रिविद्यविद्याधर षाषाकविचक्रवर्तिभट्टारकश्रीशुभचन्द्रविरचितायां धर्मानुप्रेक्षाया द्वादशोऽधिकारः ॥ १२ ॥ साधु सुमतिकीर्तिने भी प्रार्थना की और समर्थ आचार्य शुभचन्द्रने उस प्रार्थनाको सार्थक किया || ९ || मूलसंघमें भट्टारकपद के स्वामी, विद्वानोंमें श्रेष्ठ शुभचन्द्र लक्ष्मीचन्द्र और वीरचन्द्रके गुरु हैं ॥ १० ॥ आचार्य शुभचन्द्र प्रसादसे उनके शिष्य लक्ष्मीचन्द्रने इस टीकाको विस्तृत किया ॥ ११ ॥ इति धर्मानुप्रेक्षा ॥ १२ ॥ इति श्री कार्त्तिकेयानुप्रेक्षा टीका समाप्ता ॥ 1
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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