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१२. धर्मानुप्रेक्षा
पश्चातिचारा वर्जनीयाः । तत्कथमिति चेत् । 'धन्वधस्छेदातिभारारोपणान्नपाननिरोधाः । निजेटदेशगमनप्रतिबन्धकरण रज्जुश्रृंखलादिभिः बन्धनं बन्धः । १ । यष्टितर्जनवेत्रदण्डादिभिः प्राणिनां ताडनं हननं वधः । २ । कर्णकंबलनासिकालिलिङ्गप्रजनचक्षुरादीनाम् अवयवानां विनाशनं छेदः । ३ । न्यायाङ्गारादधिकभारवाहन राजानादिलोभावतिभारारोपण बहुभारधारणम् । ४ । गोमहिंपीचलीवर्दवा जिग जमहिषमानवशकुन्तादीनां क्षुधातृषादिपीडोत्पादनम् अन्नपाननिरोधः । ५ । प्रथमाणुव्रतधारिणां पचाविचास वर्जनीयाः । अथ प्रथममते ममपालमा नवलकुमारयोः कथा ज्ञातव्या ॥ ३३२ ॥ अय द्वितीयवतं गाथायेन व्यनक्ति
हिंसा-वयणं ण वयदि ककस वयणं पि जो ण भासेदि । रिचयणं पि तहाण भास गुज्झत्रयणं पि ।। ३३३ ।। हिद- मिद वयणं भासदि संतोस करं तु सब- जीवाणं । धम्म-पयासण-वय अणुवदी होदि' सो विदिओ ॥ ३३४ ॥
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अत्यन्त मांसप्रेमी था । उसने राजा उद्यानमें एकान्त देखकर राजाके मेदेको मार डाला और उसे खा गया । मेदेके मारनेका समाचार सुनकर राजा बड़ा कुछ हुआ और उसने उसके मारनेवालेकी खोज की । उद्यानके मालीने, जो वृक्ष था मेदे मारते हुए राजपुत्रको देख लिया था। रात्रि के समय उसने यह बात अपनी खीसे कही। राजाके गुप्तचरने सुनकर राजाको उसकी सूचना दे दी। सुबह होनेपर माली बुलाया गया । उसने सच सच कह दिया । 'मेरी आज्ञाको मेरा पुत्र ही तोड़ता है' यह जानकर राजा बड़ा रुष्ट हुआ और कोतवालको आज्ञा दी कि राजपुत्रके नौ टुकड़े कर डालो । कोतवाल कुमारको वधस्थान पर ले गया और चाण्डालको बुलानेके लिये आदमी गया | आदमीको आता हुआ देखकर चाण्डालने अपनी स्त्री से कहा- 'प्रिये, उससे कह देना कि चाण्डाल दूसरे गाँव गया है | और इतना कह कर घरके कोनेमें छिप गया। कोतवालके आदमीके आवाज देने पर चाण्डालनीने उससे कह दिया कि वह तो दूसरे गाँव गया है। यह सुनकर वह आदमी बोला- ' वह बड़ा अभागा है । आज राजपुत्रका वध होगा । उसके मारनेसे उसे बहुतसे वखाभूषण मिलते।' यह सुनकर धनके लोभसे चण्डालनीने हाथके संकेतसे चण्डालको बता दिया, किन्तु मुखसे यही कहती रही कि वह तो गांव गया है। आदमीने घरमें घुसकर चण्डालको पकड़ लिया और वधस्थानपर लेजाकर उससे कुमारको मारनेके लिये कहा । चाण्डालने उत्तर दिया- आज चतुर्दशीके दिन मैं जीवघात नहीं करता । तब कोतवाल उसे राजाके पास लेगया और राजासे कहा- 'देव, यह राजकुमारको नहीं मारता ! चाण्डाल बोला- 'स्वामिन्! मुझे एक बार सांपने डस लिया और मैं मर गया। लोगोंने मुझे स्मशानमें ले जाकर रख दिया । वहाँ सर्वोपधि ऋद्धिके धारी मुनिके शरीरसे लगकर बहनेवाली वायुसे में पुनः जीवित होगया । मैंने उनके पास चतुर्दशी के दिन जीवहिंसा न करने का व्रत ले लिया । अतः आज मैं राजकुमारको नहीं मारूंगा । देव जो उचित समझें करें । अस्पृश्य चाण्डालके व्रतकी बात सोचकर राजा बहुत रुष्ट हुआ । और उसने दोनोंको बन्धवाकर तालाब फिकवा दिया । प्राण जानेपर भी अहिंसा व्रतको न छोड़नेवाले चाण्डालपर प्रसन्न होकर जलदेवताने उसकी पूजा की । जब राजा महाबलने यह सुना तो देवताके मयसे उसने मी चाण्डालकी पूजा की और उसे अपने सिंहासन पर बैठाकर अस्पृश्यसे स्पृश्य बना दिया || ३३२ ॥ आगे दो
१ म यदि, गहविदि, रु नदि ।