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________________ XVI 'श्रीमद् राजन् बम' की स्थापना हुई थी। श्री लघुराज स्वामीके चौदह चातुर्मासोंसे पावन हुआ यह आश्रम आज बढ़ते-बढ़ते गोकुल-सा गाँव बन गया है। श्री स्वामीजी द्वारा मोजित सत्संगभक्तिका क्रम आज भी यहाँ पर उनकी आज्ञानुसार चल रहा है। धार्मिक जीवनका परिचय करानेवाला यह उत्तम तीर्थ बन गया है। संक्षेपमें यह तपोवनका नमूना है। श्रीमद्जीके तत्वज्ञानपूर्ण साहित्यका भी मुख्यतः यहींसे प्रकाशन . होता है। इस प्रकार यह श्रीमद्जीका मुख्य जीवंत स्मारक है। इसके अतिरिक्त वर्तमान में निम्नलिखित स्थानोंपर श्रीमद् राजचन्द मंदिर आदि संस्थाएँ स्थापित हैं जहाँ पर मुमुक्षु धुमिलकर आत्म-कल्याणार्थ वीतराग सस्वज्ञानका लाभ उठाते है-वाणिया, राजकोट, मोरबी, वडवा, खंभात, काविठा, सीमरडा, वडाली, भादरण, नार, सुणाव, नरोडा, सहोदरा, घामण, अहमदाबाद, ईडर, सुरेन्द्रनगर, बसो, बटामण, उत्तरसंडा, खोरसद, बम्बई ( घाटकोपर एवं चौपाटी), देवलाली, बेंगलोर, इन्दौर, आहोर (राजस्थान), मोम्बासा (आफ्रिका) इत्यादि । अन्तिम प्रशस्ति आज उनका पार्थिव देह हमारे बीच नहीं है मगर उनका अक्षरदेह तो सदाके लिये अमर है। उनके मूल पत्रों तथा लेखों का संग्रह गुर्जरभाषा में 'श्रीमद् राजन्द्र ग्रन्थ मे प्रकाशित हो चुका है (जिसका हिन्दी अनुवाद मी प्रगट हो चुका है) वहीं मुमुक्षुओंके लिए मार्गदर्शक और अवलम्बनरूप है। एक-एक पत्र में कोई अपूर्व रहस्य भरा हुआ है । उसका मर्म समझने के लिए सन्त समागमको विशेष नावश्यकता है। इन पत्रोंमें श्रीमद्जीका पारमार्थिक जीवन जहाँ सहाँ दृष्टिगोचर होता है। इसके अलावा उनके जीवनके अनेक प्रेरक प्रसंग जानने योग्य है, जिसका विशद वर्णन श्रीमद् रामचन्द्र आश्रम प्रकाशित 'श्रीमद् राजचन्द्र जीवनकला' में किया हुआ है। यहाँ पर तो स्थानाभावसे उस महान विभूतिके जीवनका विहंगावलोकनमात्र किया गया है । श्रीमद् लघुराज स्वामी (श्री प्रभुश्रीजी) 'श्रीसद्गुरुप्रसाद' ग्रन्थको प्रस्तावनामै श्रीमद्जी के प्रति अपना हृदयोष्गार इन शब्दों मे प्रगट करते हैं--" अपरमार्थ में परमार्थके दृढ़ आग्रहरूप अनेक सूक्ष्म सूलभूलैयकि प्रसंग दिखाकर, इस दासके दोष दूर करने में इन आसपुरुषका परम सत्संग और उत्तम बोष प्रबल उपकारक बने हैं'''' संजीवनी औषध समान मृतको जीवित करें ऐसे उनके प्रबल पुरुषार्थ जागृत करनेवाले वचनोंका माहात्म्य विशेष विशेष भास्यमान होनेके साथ ठेठ मोक्षमें ले जाय ऐसी सम्यक् समन (दर्शन) उस पुरुष और उसके बोधकी प्रतीति प्राप्त होती है; वे इस दुश्म कलिकालमें माश्वर्यकारी अवलम्बन है । परम माहात्म्यवंत सद्गुरु श्रीमद् राजचन्द्रदेवके वचनोंमें तल्लीनता, श्रद्धा जिसे प्राप्त हुई है, या होगी उसका महद् भाग्य । वह मध्य जीव अल्पकालमें मोक्ष पाने योग्य है ।" ऐसे महात्माको हमारे अगणित वन्वन हो ।
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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