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उत्तम मार्दव धर्मका स्वरूप
आर्जव धर्मका
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33
संयम धर्मका स्वरूप
संयमके दो भेद
शौच धर्मका
२९५
सत्य धर्मका
२९६
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सत्यवचनके दस भेव और उनका स्वरूप २९६
२९७
२९८
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उपेक्षासंयमका लक्षण अपहृत संयम के तीन भेद
पधर्मका स्वरूप त्यागधर्मका
पांच समितियोंका स्वरूप
आठ शुद्धियोंका स्वरूप
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आकिमन्यधर्मका स्वरूप
मचर्य धर्मका
शील अठारह हजार भेद
ג
शूरका स्वरूप
दस धर्मक कथनका उपसंहार हिंसामूलक आरम्भका निषेध जहां हिंसा है वहां धर्म नहीं है ।
दसघका माहात्म्य
निर्विचिकित्साका
अमूददृष्टिका
उपगूहूनका
स्थितिकरणका
वात्सल्यगुणका
प्रभावना गुण का
चार गाथाओंसे पुण्यकर्मकी इच्छाका निषेध
निःशंकित गुणका कथन
निःकांक्षित गुणका "
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- कार्त्तिकेयानुप्रेक्षा
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पूछ
२९३
२९४
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३००
३०३
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३०४
३०५
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३०६
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३०८
३०९
३१०
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३१३
३१४
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३१६
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३१८
३१९
पृष्ठ
निःशंकित आदि गुण किसके होते हैं ३१९
धर्मको जानना और जानकर भी
पाना कठिन है । श्रीपुत्रादिकी तरह यदि मनुष्य धर्मसे प्रेम करे तो सुखप्राप्ति सुलभ है । धर्मके बिना लक्ष्मी प्राप्त नहीं होती धर्मात्मा जीवका आचरण कैसा होता है।
धर्मका माहात्म्य
धर्मरहितकी निन्दा
तपके बारह भेद
अनशन तपका स्वरूप
एकभक्त, चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम, दशम, द्वादश आदि स्वरूप
उपवास दिन आरम्भका निषेध मौदर्य तपका स्वरूप
atra आदिके लिये अरमौदर्य करनेका निषेध
वृत्ति परिसंख्यान तपका स्वरूप रसपरित्याग
विविशय्यासन
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साधुके योग्य वसतिका वसतिका उद्भादि दोषोंका विवेचन
कायक्लेश अपका स्वरूप
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प्रायश्चित्त तपका स्वरूप
'प्रायश्चित्त' का शब्दार्थ
प्रायश्चित्तके इस भेदका कथन
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77
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३२६
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३३४
३३५
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३३९ ३४०
17
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३४२
आलोचनाके दस दोष
आलोचना करनेपर गुरुके द्वारा दिये
गये प्रायश्चित्तको पालनेका विधान ३४४
विनय के पांच भेद
३४५