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________________ 98 उत्तम मार्दव धर्मका स्वरूप आर्जव धर्मका 33 33 संयम धर्मका स्वरूप संयमके दो भेद शौच धर्मका २९५ सत्य धर्मका २९६ 37 15 सत्यवचनके दस भेव और उनका स्वरूप २९६ २९७ २९८ 17 उपेक्षासंयमका लक्षण अपहृत संयम के तीन भेद पधर्मका स्वरूप त्यागधर्मका पांच समितियोंका स्वरूप आठ शुद्धियोंका स्वरूप ** 37 आकिमन्यधर्मका स्वरूप मचर्य धर्मका शील अठारह हजार भेद ג शूरका स्वरूप दस धर्मक कथनका उपसंहार हिंसामूलक आरम्भका निषेध जहां हिंसा है वहां धर्म नहीं है । दसघका माहात्म्य निर्विचिकित्साका अमूददृष्टिका उपगूहूनका स्थितिकरणका वात्सल्यगुणका प्रभावना गुण का चार गाथाओंसे पुण्यकर्मकी इच्छाका निषेध निःशंकित गुणका कथन निःकांक्षित गुणका " 15 37 - कार्त्तिकेयानुप्रेक्षा " पूछ २९३ २९४ " 33 33 ३०० ३०३ 39 ३०४ ३०५ 33 ३०६ 19 ३०८ ३०९ ३१० " ३१३ ३१४ 35 ३१६ ३१७ 33 ३१८ ३१९ पृष्ठ निःशंकित आदि गुण किसके होते हैं ३१९ धर्मको जानना और जानकर भी पाना कठिन है । श्रीपुत्रादिकी तरह यदि मनुष्य धर्मसे प्रेम करे तो सुखप्राप्ति सुलभ है । धर्मके बिना लक्ष्मी प्राप्त नहीं होती धर्मात्मा जीवका आचरण कैसा होता है। धर्मका माहात्म्य धर्मरहितकी निन्दा तपके बारह भेद अनशन तपका स्वरूप एकभक्त, चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम, दशम, द्वादश आदि स्वरूप उपवास दिन आरम्भका निषेध मौदर्य तपका स्वरूप atra आदिके लिये अरमौदर्य करनेका निषेध वृत्ति परिसंख्यान तपका स्वरूप रसपरित्याग विविशय्यासन 17 साधुके योग्य वसतिका वसतिका उद्भादि दोषोंका विवेचन कायक्लेश अपका स्वरूप 13 33 प्रायश्चित्त तपका स्वरूप 'प्रायश्चित्त' का शब्दार्थ प्रायश्चित्तके इस भेदका कथन ३२१ 31 ३२२ 77 ३२३ ३२६ ३२७ ३२८ ३३० 33 ३३१ _३३२ "1 ३३४ ३३५ ३३६ *) ३३९ ३४० 17 ३४१ ३४२ आलोचनाके दस दोष आलोचना करनेपर गुरुके द्वारा दिये गये प्रायश्चित्तको पालनेका विधान ३४४ विनय के पांच भेद ३४५
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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