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## Sixth Karma Granth
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After explaining the evidence obtained by multiplying the possible yogas, uses, and leshyas with the alternatives and groups of the उदयस्थान (arising place) related to each गुणस्थान (quality place) of the मोहनीयकर्म (delusion-causing karma), we now consider the सत्तास्थान (existence places) to explain the संवेध भङ्ग (breaking of perception) of the संवेध भक् (perception-possessing beings).
**Breaking of Perception of the Delusion-Causing Karma in the Quality Places**
**तिण्णेगे एगेगं तिग मोसे पंच चउसु नियट्टिए' तिनि । एक्कार बायरम्मी सुहमे चउ तिनि उवसंते ॥ ४८ ॥**
**Word Meaning:**
* **सिण:** Three सत्तास्थान (existence places)
* **एगे:** One in the मिथ्यादृष्टि गुणस्थान (false-view quality place)
* **एगे:** One in the सासादन (coarseness)
* **तिग:** Three in the मिश्र (mixed)
* **मोसे:** Five in each of the four गुणस्थान (quality places) starting with the अविरत सम्यग्दृष्टि (uninterrupted right view)
* **चउसु:** Four
* **नियट्टिए:** Five in the अपूर्व (unprecedented)
* **तिन्नि:** Three in the एवकार (eleven)
* **बायरम्मी:** Eleven in the अनिलवादर (wind-like)
* **सुहमे:** Four in the सूक्ष्मसपराय (subtle-minded)
* **चच:** Four
* **तिग्नि:** Three
* **उबसंते:** Three in the उपशान्त मोह (calm delusion)
**Verse Meaning:**
There are three सत्तास्थान (existence places) in the मिथ्यात्व गुणस्थान (false-view quality place), one in the सासादन (coarseness), three in the मिश्र (mixed), and five in each of the four गुणस्थान (quality places) starting with the अविरत सम्यग्दृष्टि (uninterrupted right view). There are three in the अपूर्वकरण (unprecedented action), eleven in the अनिवृत्तिवादर (non-reversal-like), four in the सूक्ष्मसंपराय (subtle-minded), and three in the उपशान्तमोह (calm delusion).
**Special Meaning:**
The verse describes the सत्तास्थान (existence places) in the गुणस्थान (quality places) of the मोहनीयकर्म (delusion-causing karma). The number of सत्तास्थान (existence places) in each गुणस्थान (quality place) of the मोहनीयकर्म (delusion-causing karma) is:
* **Other versions:** The text 'चउसु तिगःपुब्वै' is found in other versions. This text seems appropriate, but the commentator has followed the text 'नियट्टिए तिशि' and commented accordingly. Therefore, the text 'नियट्टिए तिनि' is retained here.
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
३०३
इस प्रकार मोहनीयकर्म के प्रत्येक गुणस्थान सम्बन्धी उदयस्थान विकल्प और पदवृन्दों तथा वहाँ सम्भव योग, उपयोग और लेश्याओं से गुणित करने पर उनके प्राप्त प्रमाण को बतलाने के बाद अब संवेध भकों का कथन करने के लिये सत्तास्थानों का विचार करते हैं ।
गुणस्थानों में मोहनीयकर्म के संवेध भङ्ग
तिण्णेगे एगेगं तिग मोसे पंच चउसु नियट्टिए' तिनि । एक्कार बायरम्मी सुहमे चउ तिनि उवसंते ॥ ४८ ॥
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I
शब्दार्थ- सिण- तीन सत्तास्थान एगे - एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में एगे एक में ( सासादन में ), एवं एक, तिग-तीन, मोसे मिश्र में पंच-पांच, चउसु — अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान आदि चार में निपट्टए- अपूर्व ५. रण में तिन्नि-तीन एवकार-ग्यारह, बायरम्मी – अनिलवादर में सुसूक्ष्मसपराय में, चच-चार, तिग्नि तीन, उबसंते, उपशान्त मोह में ।
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गाथार्थ -- मोहनीयक मं के मिथ्यात्व गुणस्थान में तीन, सासादन में एक, मिश्र में तीन, अविरत सम्यग्दृष्टि आदि चार गुणस्थानों में से प्रत्येक में पांच-पांच, अपूर्वकरण में तीन, अनिवृत्तिवादर में ग्यारह सूक्ष्मसंपराय में चार और उपशान्तमोह में तीन सत्तास्थान होते हैं ।
विशेषार्थ - - गाथा में मोहनीय कर्म के गुणस्थानों में सत्तास्थान वतलाये हैं । प्रत्येक गुणस्थान में मोहनीयामं के मत्तास्थानों के
१ अन्य प्रतियों में, 'चउसु तिगःपुब्वै' यह पाठ देखने में आता है। उक्त पाठ समीचीन प्रतीत होता है, किन्तु टीकाकार ने 'नियट्टिए तिशि' इस पाठ का अनुसरण करके टीका की है, अतः यहाँ भी यही 'नियट्टिए तिनि' पाठ रखा है |