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________________ -२२०] [ २३०. सयोगकेलिनाभ त्रयोदशगुणस्थानम् ] शुक्लव्यानाग्निनिर्दग्धघातिकर्मचतुष्टयेन्धनः प्रादुर्भूतात्रिन्त्यकेवालज्ञानदर्शनविशिष्टलोचनदयावलोकितकालत्रयतिसमस्तवस्तुसंभृतलोकालोकानन्तसुखसुधारससंतृप्तोऽनन्तानन्तवीर्यामितबलः सकलात्मप्रदेशेषु निचितविशुद्धचैतन्यस्वभाषस्तीर्थकरपुण्यविशेषोदयं संप्रामाष्टमहाप्रातिहार्यचस्त्रिशतिशयसमवसरणविभूतिसंभावितकैवल्य - कल्याणो दिवाकरकोटिबिम्बविडम्बितप्रभाभासुरप्रक्षोणतमः परमोदारिकदिव्यदेह इतरकेवलो वा स्वयोग्यगन्धकुट्यादिविभूतिर्जगत्प्रयमउग्रजनप्रसोधपारायणपरमदिव्यध्वनिशतेन्द्रवन्वितस्सघोगकेवलीति त्रयोदशगुणस्थानवर्ती भवति । २२९. क्षीणकषाय नामक बारहवाँ गुणस्थान मोहनीय कर्मको समस्त प्रवृत्तियोंको संपूर्ण रूपसे नष्ट करके स्फटिक पात्रमें रखे स्वच्छ जलके समान विशुद्ध अन्तरंगवाला द्वितीय शुक्लध्यानके बलसे ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय तथा अन्तराय रूप तीन घातिया कोका क्षय वारता हुआ परम निर्ग्रन्थ क्षीणकपाय बीतराग छद्मस्थ नामक बारहवें गुणस्थानवर्ती होता है। १ ३०, सयोगकेवली नामक तैरहवाँ गुणस्थान शुक्लव्यानरूप अग्निके द्वारा चार घातिया कर्मरूप इन्धनके जल जानेसे प्रकट हुए अचिन्त्य केवलज्ञान तथा केवलदर्शनरूप विशिष्ट नेत्र-द्वयके द्वारा कालत्रयवर्ती समस्त वस्तु समूहसे भरे हुए लोकालोकको देखनेवाले, अनन्त सुखरूप सुधारससे संतृप्त, अनन्त वीर्यरूप अमित बलयुक्ता, समस्त आत्म प्रदेशों में व्याप्त विशुद्ध चैतन्य स्वभाव, तोर्थकर पुण्य विशेषके उदयसे प्राप्त हुए अष्ट महाप्रातिहार्य, चौंतीस अतिशय, समवशरण विभूतिके द्वारा मनाया गया है कैवल्य कल्याणक जिनका, करोड़ों सुर्योके प्रतिविम्बको तिरस्कृत करनेवाली
SR No.090237
Book TitleKarmaprakruti
Original Sutra AuthorAbhaynanda Acharya
AuthorGokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size1010 KB
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