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________________ --186] कमनहतिः [ १४४. अशुभनागकर्मणः लक्षणम् ] अशुभनामापानाद्यप्रशस्तावयवं करोति । [ १४५. सुभगनामकर्मणः लक्षणम् | सुभगनाम परेषां रुचिरत्वं करोति । [ १४६. दुर्भगनागकर्मणः लक्षणम् ] बुभंगनामारुचिरत्नं करोति । [ १४५. सुम्वरनामकर्मणः लक्षणम् । सुस्वरनाम श्रवणरमणीयस्वरं करोति । [ १४८. दुस्स्वरनामकर्मणाः लक्षणम् ] दुस्स्वरं नाम श्रवणबुस्सहं स्वरं करोति । १४३. गुभ नाम कर्मका लक्षण शुभ नाम कर्म मस्तक आदि प्रशस्त अवयव करता है। १४४. अशुभ नाम कमका लक्षण अशुभ नाम कर्म अपान आदि अप्रशस्त अवयवोंको करता है। १४५, सुभग नाम कर्मका लक्षण सुभग नाम कर्म दूसरोंकी रुचिरता करता है। . १४६. दुर्भग नाम कर्मका रक्षण दुर्भग नाम कर्म दूसरोंकी अरुचि करता है १४७. सुस्वर नाम कर्मका लक्षण सुस्वर नाम कम कर्णप्रिय स्वर करता है। १४८. घुःस्वर नाम कर्मका लक्षण दुःस्वर नाम कर्म कानोंको दुःसह स्वर करता है।
SR No.090237
Book TitleKarmaprakruti
Original Sutra AuthorAbhaynanda Acharya
AuthorGokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size1010 KB
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