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कर्मप्रकृति
[२६.. [२६. निद्रायाः स्वरूपम् ]
यतो गच्छतः स्पानं तिष्ठत उपवेशनमुपविक्षतशयनं च भवति सा निद्रा।
[ २७. निद्रानिद्रायाः स्वरूपम् ]
जापापितेऽपि लोभनमुनागिन न शक्नोति यतम्मा निद्रानिद्रा। [ २८. प्रचलायाः स्वरूपम् ]
यत ईषन्मोल्य स्वपिति सुनोऽपोषपोषज्नानाति सा प्रचला। [ २९. प्रचलामचलायाः स्वरूपम् ]
यतो निद्रायमाणे लाला बहत्यमानि चलन्ति सा प्रचलाप्रथला।
२६. निद्राका स्वरूप जिसके कारण चलते, किसी स्थानपर ठहरते, बिस्तर पर बैठते नोंद
आती है, उसे निद्रा कहते हैं। २७. निद्रानिद्राका स्वरूप जिसके कारण उठाये जाने ( जमाये जाने ) पर भी आँखें न खुल
सके, उसे निद्रानिद्रा कहते हैं । २८. प्रचलाका स्वरूप जिसके कारण कुछ आँख खोलकर सोये तथा सोते हुए भी कुछ
कुछ जानता रहे, उसे प्रचला कहते हैं। २९. प्रचलाप्रबलाका स्वरूप जिसके कारण सोते हुए लार बहे तथा अंग चलें, उसे प्रचलाप्रचला कहते हैं।