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श्रीमद्-अभयचन्द्रसिद्धान्तचक्रवतिविरचिता
कर्मप्रकृतिः
[ मङ्गलाचरणम् ]
प्रक्षोणावरणद्वैतमोहप्रत्यूहकर्मणे । अनन्तानन्तघी सृष्टिसुखवीर्यात्मने नमः ॥
[ १. कर्मणः विष्यम् 1
आत्मनः प्रदेशेषु बद्धं कर्म द्रव्यकर्म भावकर्म नोकर्म चेति त्रिविधम् ।
[ २. द्रव्यकर्मणः चातुर्विध्यम् ]
तत्र प्रकृतिस्थित्यनुभाग प्रदेशभेदेन द्रव्यकर्म चतुविधम् ।
मंगलाचरण
ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय इन चार घातिकर्मोंको नाश करके अनन्तानन्त ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य इन आत्मीय गुणों को प्राप्त करनेवाले आत्मा ( परमात्मा ) के लिए नमस्कार है ।
१. कर्मके तीन भेद
आत्माके प्रदेशों में बद्ध कर्म तीन प्रकारका है - १. द्रव्यकर्म, २. भावकर्म और ३, नोकर्म ।
२. द्रव्यकर्मके भेद
अव्यकर्म प्रकृति, स्थिति, अनुभाग तथा प्रदेशके भेदसे चार तरहका है ।