________________
--
-
.-
.
१६ श्री कल्याण मन्दिरस्तोत्र सार्थ
इलोकार्थ- हे नाथ ! आपकी स्तुति कर मैं आपसे पन्य किसी फल को चाह नहीं रखता. केवल यही चाहता है कि भव भवान्त गे में सदा आप ही मेरे स्वामो रहे, जिसमें कि मैं आपको अपना प्रादर्श बना कर अपने को मापके समान बना सक् । ४२ ॥ मैं तुम चरन कमल गुन गाय. बहुविधि भक्ति करी मन लाय । जन्म जन्म प्रभ पावई तोहि, यह सेवाफन दोजे मोहि ।।
४२ ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो इत्यिरत्तरोपणासयाण प्रमखीणमहाणसाणं 1 । ___मन्त्र ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं प्रहं अमिमा उसा भूर्भुवः स्वः चक्रेश्वरी देवी सर्वगेगं भिद भिद ऋद्धि वृद्धि कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि -श्रद्धापूर्वक इस मंत्र का प्रतिदिन १०८ दार जाप करने से स्त्रीसम्बन्धी समस्त कठिन रोगों का नाश होता है और सर्व सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं ।
*ही असारणशरणाय श्रीजिनाय नमः ।
Oh Lord ! i: there can be any IAward whatscever for my having been devoted to Thy lolus-ent for a series of births, mavest Thou yield protection in me who have thee as the only reluje ( or Thee alone as the refuge) and mayes Thou alone be my master in this world and even in my future life { incarnations). (48)
५-मक्षीणमहानस ऋद्विषारी जिनों को नमस्कार हो।