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{ ९२ श्री कल्याणमदिरस्तोत्र सार्थ
मन्त्र-व्यू क्लीं जये विजये जयंते अपराजिते, जम्ल्यू जंभे, मल्ल मोहे, म्म्ल्यूँ स्तम्भे, मल्ब्यू स्तम्भिति, । अमुकं ) मोठ्य मोहय मम वश्य कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि-इस मन्त्र के जाप में स्त्री का परम्पर में अाकर्षण होता है । मनुष्य साधं तो +त्री और म्बी साधे तो पुरुप ब्रश में होता है।
ॐ ह्रीं जगजीवदयालवे श्रीजिनाय नमः ।
The poel prigs to God to be gracious.
Us Lord, the cherishet cf affec!11! !os
the miser.tble ! the Protector the hoty abode of compassion (os residence of mercy and merit) ! the best amongst those who have contraolled their senses! great God! have pity on nie who devotedly bow to Thee; and abow readiness to destroy sprouls of my sufferings. (39)
विषमज्वविघातक निः सख्यसारशरणं शरणं शरण्य ...
मासाद्य सादितरिपुरथितावदातम् । त्वत्पादपङ्कजमपि प्रणिधानवन्ध्यो,
बन्ध्योऽस्मि तद्भुवनपावन ! हा हतोऽस्मि॥४०॥ १-- 'सावितरिपु' इति भित्रं पद वा ।