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श्री कल्याणमन्दिरस्तोत्र सार्थ
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देखा भी है, पूजा भी है, नाम भक्तिभाव अ० श्रद्धापूर्वक, किन्तु न ते इसीलिये तो दुःखों का मैं गेह बना हूँ फले न किरिया बिना भाव के है लोकोक्ति सुप्रचलित ही ॥
श्रवण किया । व्याज किया निश्चित हो ।
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श्लोकार्थ हे जनबान्धव ! पहिले किन्हीं जन्मों में मैंने यदि आपका नाम भी सुना हो. आपकी पूजा भी की हो तथा आपका दर्शन भी क्रिया हो तो भी यह निश्चय है कि मैंने भक्तिभाव से आपको अपने हृदय में कभी भी धारण नहीं किया, इसी लिये तो अब तक इस संसार में मैं दुःखों का पात्र ही बना रहा. क्योंकि भावरहित क्रियाएं फलदायक नहीं होतीं ॥ ३८ ॥
सुम्यो कान जस पूजे पाय, नैनन देख्यो रूप अघाय । भक्तिहेतु न भयो चित चाव, दुखदायक किरिया बिन भाव ॥ ३८ ऋद्धि - ॐ ह्रीं ग्रहं णमो तुम्सहकट्टणिवारयाणं खीरसवीण ।
मन्त्र — ॐ ह्रीं श्रीं ऐं अहं क्लीं ब्लें न यूँ नमिऊण पासनाह दुःखारिविजयं कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि - इस चिन्तामणि मन्त्र का श्रद्धापूर्वक सवा लाख वार जप करने से चिन्तित कार्यों की तत्काल सिद्धि होती है । ॐ ह्रीं सर्वदुःखहराय श्रीजिनाय नमः ।
Prayers. eic., void af sincerity are fruittess.
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h philanthropist ! though I have even heard, worshipped and seen Thee,
- घर । २- क्षीरस्रावी ऋद्धिधारी जिनों को नमस्कार हो ।