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यत्र मत्र ऋद्धि प्रादि सहित श्लोकायं-हे प्रतापपुरज ! समवसरण भूमि में आपके कारों पोर माणिक्य, स्वण और चांदी के बझे तीन कोट हैं, वे मानो आपकी कान्ति, प्रताप और कीर्ति के वर्तुलाकार समूह ही हैं।॥ २७ ॥ प्रभु तुम शरीर दुति रजत जेम, परताप पुंज जिमि शुद्ध हेम । अतिधवल सुजश 'रूपा समान, तिनके गह तीन विराजमान ।।
२७ ऋद्धि-ॐ ह्रीं अई गम) खलदृट्ठणासयाणं "घोरपरक्कमाणं।
____ मंत्र-ॐ ह्रीं नमी अरिहंताण, ॐ ह्रीं नमी सिद्धा, ॐ ह्रीं नमो पाइरियाणं, ॐ ह्रीं नमो ज्वज्झायाण, ॐ ह्रीं नमो लोए सम्यसाहणं, ॐ ह्रीं नमो गाणाय, ॐ ह्रीं नमो दसणाय, ॐ ह्रीं नमो चारित्ताय, ॐ ह्रीं नमो तवाय, ॐ ह्रीं नमो त्रैलोक्यवशंकराय ह्रीं स्वाहा ।।
विधि--इस महामंत्र का श्रद्धापूर्वक उच्चारण करते हुए जल-मंत्रित कर रोगी को पिलाने तथा उस पर छींटा देने से उसकी पीड़ा एवं दृष्टि-दोष ( नजर ) दूर होती है।
ॐ ह्रीं वप्रत्रयविराजिताय श्रीजिनाय नमः । The poet depicts the triad of remparts
Va (all) knowing being | Thou sbinest in all directions on accouat of the triad of the ramparts beautifully made of rubies, gold and silver-the triad whico 19 as it were the store of Thy lustre, prowess and glory, thal fill up the three worlds and are amassed togeiher (27)