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५६ ] श्री कल्याणमंदिर स्तोत्र सार्थ है यह निश्चय प्यारे मित्रों, जिनके होत पीलिया रोग । श्वेत शंख को विविध वणं, विपरीत रूप देखें वे लोग।
श्लोकार्थ--हे त्रिलोकायशिखामणे जिस तरह पीलिया रोग वाला व्यक्ति सफेद वर्ण वाले भी शंख को पीला और मीला मादि अनेक रंग वाला मानना है उसी प्रकार अन्य मतालम्बी पुरुष रागद्वषादि अन्धकार से रहित प्रापको ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश प्रादि मान कर पूजते हैं ॥१८॥ तुम भगवन्त विमल गुण लीन, समलरूप मानहिं मतिहीन । ज्यों पीलिया रोग दृग गहै, वन विवर्न संस्ख सौ कहै ।। १८ ऋद्धि-ओं ह्रीं पई पामोकपिनियोससाणं पाहामणाणं
मत्र-मों ह्रीं नमो अग्हिताणं, प्रों ह्रीं नमोसिखाणं, ओं ह्रीं नमो आयरियाणं, मोह्रींनमोउवझायाण, प्रों ह्रीं नमो लोए सम्बसाहणं, ओं ममो सुभदेवाए. भगवईए सव्यसुभमए, बारसंगपवयण जणणीए, सरसइए, सम्बवाणि, सुवण्णवणे, मों अवतर अवतर वेषि, मम सरीरं, पविस पूवं, तस्य पविस, सव्वअणभयहरीए, अरिहंतसिरीए स्वाहा।
विषि—इस मन्त्र को पढ़कर चाक मिट्टी को मन्त्रित कर तिलक लगावे। फिर रात्रि के समय सब मनुष्यों के सोने पर हाथ में जल से भरी भारी लेकर एकान्त स्थान में खड़े खड़े लोगों की वार्ता श्रवण करे। जो बात समझ में पाये उसी को सत्य समझे। मन में विचारे हुए कार्य का शुभाशुभ फल इसी सरह जात होता है।
प्रों ह्रीं परवादिदेवस्वरूपध्येयाय नमः। १- मेष । २--मने रंग वामर । -प्रमाश्रमण विनोको नमस्कार हो।