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________________ , - ४४ ] श्री कल्याणमंदिरस्तोत्र सार्थ water, is certainly the effect of ite it inside i:. { 10) जलाग्निभय विनाशक यस्मिन् हरप्रभृतयो ऽपि हतप्रभावाः, सोऽपि स्वया रतिपतिः क्षपितः क्षणेन | विध्यापिता हुतभुजः पयसाऽथ येन, पीतं न कि तदपि दुर्धरवाडवेन ? ||११ जिसने हरिहरादि देवों का, खोया यश-गौरष-सन्मान । उस मन्मथ' का हे प्रभु ! तुमने,क्षण में मेंट दिया अभिमान ।। सच है जिस जल से पल भर में, दावानल' हो जाता शान्त । क्यों न जला देता उस जल को?, बडवानल' होकर प्रशान्त ॥ श्लोकार्थ--हे अनङ्गविजयिन् । जिस काम ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश प्रादि प्रख्यात पुरुषों को पराजित कर जन साधा. रण की दृष्टि में प्रभावहीन बमा दिया है। हे जितेन्द्रिय जिनेन्द्र ! उसी काम ( विषय वासनामों) को पापने क्षण भर में नष्ट कर दिया, यह कोई आश्चर्य का बात नहीं है। क्योंकि जो जल प्रचण्ड अग्नि को बुझाने की सामथ्यं रखता है, वह जल जब समुद्र में पहुंच कर एकत्र हो जाता है, तब क्या वह अपने ही उदर में उत्पन्न हुए बडवानल ( सामु. त्रिक अग्नि ) द्वारा नहीं सोख लिया जाता? अर्थात नहीं मला दिया जाता ? ॥११॥ १-कामदेव २-जगल की भयानक भग्मि । ३- सामुहिक अग्नि जो समुद्र के मध्यभाग से उत्पन्न होकर अपार जलशशि का पोषण कर लेती है। -- . . ... - .. - -- -....-. . .....
SR No.090236
Book TitleKalyanmandir Stotra
Original Sutra AuthorKumudchandra Acharya
AuthorKamalkumar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size2 MB
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