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यंत्र मंत्र ऋद्धि प्रादि सहित के दुःखों में डरने वालों के अभयप्रद, अतिश्रेष्ठ, संसार-सागर में डूबते हुये प्राणियों के उद्धारक, श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र के चरण कमलों को नमस्कार करके गम्भीरता के समुद्र, जिसकी स्तुनि करने के लिये विशाल बुद्धि ताला देवतागों का गुरु स्वयं वहस्पति भी समर्थ नहीं है, तथा जो प्रतापी कमठ के अभिमान को भस्मीभूत करने के लिये घूमकेतु अर्थात् सपुच्छग्रह (पुच्छल तारा) रूप हैं, उन तेईसवें तीर्थङ्कर श्री पार्श्वनाथ भगवान का मुझ जैसा अल्पज म्लवन करता है यह प्राश्चर्य है ! ।। १ ।। २ ।। निर्भयकरन परम परधान, भव-समुद जलतारन जान ।। शिवमन्दिर अघहरन प्रनिन्द, बन्दहं पास चरन-अरविन्द । कम ठमान-भंजन बरवीर, परिमासागर गुनगम्भीर ।। सुरगुरु पार लहैं नहिं जामु, मैं अजान जपों जस तासु ॥ श्लोक १-२-ऋद्धि ॐ ह्रीं मह णमो इठुकज्जसिद्विपरागं पजिणाणं ऋ ह्रीं मह णमो दध्वंकराण २ मोहिजिणाणं ।
मन्त्र- ॐ नमो भगवनो रिसहस्स तस्स पडिनिमित्तोण चरणपण्णत्ति इन्देण भणामइ यमेण उपाडिया जीहा कंठोठुमुहतालुया खीलिया जो मं भसह जो महसइ दुइदिठ्ठीए बज्जसिखलाए [३ देवदत्तस्स ] मण हिययं कोह जीहा खोलिया मेगालियाए ल ल ल ल ठः ठः ठः स्वाहा।
[-भैरवपद्मावतीकल्पे प्र. ८ श्लोक ८] विधि-श्रद्धापूर्वक उक्त मन्त्र को १०८ वार जपने के पश्चात् प्रतिवादी से वाद-विवाद करने पर जप करने वाले
१--जिन भगवान को नमस्कार हो। ३-प्रवधिज्ञानी लिनों को नमस्कार हो । :- पमुकस्य ।