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श्री ऋल्य णमंदिरस्तोत्र सार्थ
करके सफेद आपन पर बैठ कर १४ दिन तक प्रतिदिन १००० वार ऋद्धि-मंत्र का जाप जपे तथा निर्धम अग्नि में चन्दन, अगर और छाड़ छबीला मिश्रित धूप क्षेपण करे। १५ वें दिन घृत, अगर तथा पीले सरसों से हवन करे तदुपरान्त मिष्टान्न वितरण करे ।।३१।। ___ लोक ३२--पद्मबीज की माला लंबार नैऋत्य की प्रोर मुख करके, काल रंग के पासन पर बैठ कर २७ दिन तक प्रतिदिन १००० बार ऋद्धि-मंत्र का जाप जपे तया निर्धम अग्नि में गूगल, तगर, नागरमोथा और घृत मिश्रित धूप क्षेपण करे ।।३२
श्लोक ३३-रुद्राक्ष की माला लेकर, वायध्य की अोर मुख करके जोगिया रंग के आसन पर बैठ कर श्रद्धापूर्वक ७ दिन तक प्रतिदिन १००० वार ऋद्धि-मंत्र का जाप जपे तथा कपुरचन्दन, गरी, इलायचो और घृत मिश्रित धूप निर्धूम अग्नि में क्षपण करे ।।३३।। ___ श्लोक ३४--बिच्छुकांटा के फलों को माला लेकर, वायव्य की ओर मुख करके, काले रंग के प्रासन पर बठ कर मन, वचन, काय की चंचल प्रवृत्ति को रोक कर २१ दिन तक प्रतिदिन २१ वार ऋद्धि-मंत्र द्वारा मंत्रित सरसों को पानी में डाल पीर गूगल, सरसों, लालमिर्ष एवं घृत मिश्रित धूप की धूनी देवे ॥३॥
श्लोक ३५-चन्दन की माला लेकर, नैऋत्य की प्रोर मुख करके, कदलीपत्र क हरित आसन पर बैठ कर निश्चल मन से २१ दिन तक प्रतिदिन ७०० वार ऋसि-मन्त्र का जाप जपे तथा निम अग्नि में घृत और लोभान मिश्रित धूप क्षेपण करे। मंत्र का जाप ब्रह्मचर्यपूर्वक एकान्त स्थान में करे ॥३५ ।
लोक ३६.-पाट (सन) की माला लेकर, ईवान की प्रोर