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यन्त्र मन्त्र ऋद्धि. पूजन आदि सहित
व्याशा जस्ता जिगर : २६००
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मक्ताकलाप कलिलोन्यमितात पत्र
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योनिता भवता भुवनेषु माथ। .
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श्लोक २६ ऋद्धि-ॐ ही भई णमो जयंवेयपासेवताये।
मन्त्र-ॐदी श्री श्री अ' श्रः पन्ने (मार्य ? ) नमः ( स्वाहा )।
गुगा-राज्यसभा में साधक की सम्मति तथा उसके कहे हुए ववम सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं।
फल----शिवपुर नगर के दीर्घदर्शी नामक मन्त्री ने इस स्त्रोत्र के छन्वीसवें काव्यसाहित उक्त मन्त्र की साधना से राज्य दरबार में अपने वचनों को सर्वश्री प्रमाणित किया था।