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और वह थी 'कल्याणमन्दिर यूजन' । उसके सम्बन्ध में इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि बमुश्किल उसकी एक प्रति श्री पं0 जयकुमार जो शास्त्रो कारजा से प्राप्त हुई जिसका सुन्दर संशोधन अनेक ग्रन्थो के लेखक व सम्गदक श्रीमान ५० मोहनलालजी शास्त्री काव्यतीर्थ जबलपुर ने किया है । प्रतः उनका जितना भी अनुग्रह माना जाय थोड़ा है।
प्रस्तुत पुस्तक में हमने अग्रजी पढ़े लिखे सज्जनों के आनन्द के लिये इस स्तोत्र का अंग्रेजी अनुवाद भक्तामर, कल्याणमन्दिर, नमिऊणस्तोत्रत्रय नामक पुस्तक से उक्त कर इस पुस्नया में दिया है। जिसके लिए हम इस अनुवाद की प्रकाशिका "श्रीमान् मेठ देवचंद लालभाई जैन पुस्तकोद्धारक संस्था सूरत" तथा अनुवादक श्रीमान् प्रा० हीरालाल रसिकदास कापड़िया एम० ए० सूरत के विशेष प्राभारी हैं।
इस स्तोत्र के पद्यानुवाद के सशोधन में उदीयमान तरुण कवि श्री फूलचन्द जी जैन 'पुष्पेन्दु भूतपूर्व प्रध्यापक जैन गुरुकुल खुरई से अधिक सहयोग मिला, अतः उनका भी प्राभार माये बिना हम नहीं रह सकते ।
जैन समाज के लब्धप्रतिष्ठ सिद्धान्त शास्त्री विद्वान पं. दरवारीलाल जी कोठिया न्यायाचार्य व्याख्याता हि. वि. वि. वाराणसीका में अत्यन्त ऋणी हूँ, जिन्होंने इस पुस्तक की भूमिका लिख कर इस पुस्तक के गौरव को बढ़ाया है।
___ इस भक्तिरस के पुण्यमय पवित्र स्तोत्र से जैन समाज में धार्मिक भावना की अभिवृद्धि हो, संमार का दूषित वातावरण निर्दोष हो, भव्यात्मानों को शांति व माल्लाद का लाभ हो-यही इस प्रकाशन से मेरा अपना हार्दिक प्रयोजन है।
कमलकुमार जैन शास्त्री 'कुमब'