________________
यंत्र मत्र ऋद्धि जन आदि सहित
[१४३
चिन्त्यो न हन्त महतां यदि वा प्रभावः।।३।।
जन्मोदधि लघु तरन्त्पति - लाश्वेन ,
स्वामिन्नल्पगरिमाणमपि प्रपन:
यो ।
• Rite :RE. It
ग्लोक १२ ऋद्धि - ह्रीं अहं णमो अग्गल (भय बजणाए । मंत्र ॐ नमो (गगवत्यं) चण्डिकाय नमः स्वाहा ।
गुण-हर प्रकार अग्निभय नष्ट होता है ! चुल्लू भर पानी उक्त मत्र में मंत्रित कर अग्नि पर डालने से वह शान्त हो जाती है और मंत्र का प्राराधक उस अग्नि पर चल सकता है । तो भी जलता नहीं है।
फल-वाराणसी नगरी के देवदत्त बढ़ई ने मुनि द्वारा उपदिष्ट कल्याणमन्दिर के बारहवें श्लोकसहित उक्त मत्र को प्राराधना से प्रचण्ट दावानल का शान्त किया था।