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________________ २२५ अल्पबहुत्व-द्रार देवगति आदि थोवाणुत्तरवासी असंखगुणवती जाव सोहम्मो। भवणेसु वंतरेसु य संखेज्जगुणा जोइसिया।। २७४।। गाथार्थ सबसे कम अनुत्तर विमानवासी देव हैं। उनसे क्रमश: असंख्यात गुणा अधिक सौधर्म देवलोक तक के देवों की संख्या जानना। वैमानिक देवों की अपेक्षा भवनपति तथा व्यन्तर को भी असंख्यात गुणा अधिक जानना तथा उनसे ज्योतिषक देवों को संख्यात गुणा अधिक जानना चाहिये। विवेचन-देवों में अनत्तर विमानवासी देव सबसे कम हैं। उनसे असंख्यात गुणा अधिक प्रैवेयक विमानवासी देव हैं। उनसे अच्युत विमानवासी असंख्य गुणा अधिक है। इस प्रकार क्रमश: सौधर्म देवलोक तक असंख्यात गुणा अधिक-अधिक जानना चाहिये। सौधर्म से भवनपति तथा भवनपति से व्यन्तर देव असंख्यात गुणा अधिक है। व्यन्तर से ज्योतिष्क देव संख्यात गुणा अधिक है। एकेन्द्रिय पंचिंदिया प योवा विवज्जएण विपला विसेसहिया। तत्तो य अणंतगुणा अणिदिएगिदिया कमसो । २७५।। गाथार्थ-सबसे कम पञ्चेन्द्रिय हैं। फिर विकलेन्द्रियों का क्रम उल्टा कर देने से उनमें क्रमश: विशेष (अधिक) हैं। उनसे सिद्ध अनन्त गुणा तथा सिद्ध से अनन्तगुणा एकेन्द्रिय हैं। विवेचन- सबसे कम पंचेन्द्रिय जीव हैं। फिर विकलेन्द्रियों का क्रम (विवज्जएण) विपरीत कर देने से अर्थात् चतुरिन्द्रिय, वीन्द्रिय तथा द्वीन्द्रिय करने पर एक-दूसरे से अधिक-अधिक जानना चाहिए। अर्थात् पंचेन्द्रिय से विशेष अधिक चतुरिन्द्रिय, उससे विशेष अधिक श्रीन्द्रिय, उससे विशेष अधिक द्वीन्द्रिय फिर उनसे अनन्तगुणा अधिक सिद्ध तथा सिद्ध से अनन्तगणा अधिक एकेन्द्रिय समझना चाहिये। काय थोवा य तसा सतो तेढ असंखा तओ विसेसहिया। कमसो भूदगवाऊ अकाष हरिया अर्णतगुणा।। २७६।। गावार्थ-सबसे कम उसकाय है। उनसे असंख्यात गुणा अधिक तेजस्काय है। तेजस्काय से विशेष अधिक अनुक्रम से पृथ्वी, अप, वायु, उनसे अनन्त गुणा
SR No.090232
Book TitleJivsamas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size5 MB
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