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________________ अन्तर- द्वार २०७ अतः यहाँ असंज्ञी से आशय सम्मूर्च्छिम तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय के अतिरिक्त शेष सभी द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय हैं। आश्रित अन्य एवं उत्कृष्ट अन्तर काल (एक देवलोकों का एक जीवाश्रित) जावीसाणं अंतोमुहुत्तमपरं सणकुसहसारो । नव दिण मासा वासा अणुत्तरोक्कोस उयशिदुगं ।। २५४ ।। . गाथार्थ - ईशान देवलोक तक के देवो का न्यूनतम अन्तराल अन्तर्मुहूर्त, सनत्कुमार से सहस्रार तक के देवों का नौं दिन आनत से अच्युत तक के देवो का नौ मास, नवप्रवेयकों का नौ वर्ष होता है। सर्वार्थसिद्ध विमानवासियों को छोड़कर शेष अनुत्तर विमानवासी देवों का उत्कृष्टतः अन्तर- काल दो सागरोपम हैं। विवेचन - भवनवासी देवों से ईशान तक के देवों का अन्तर-काल ग्रन्थकार ने अन्तर्मुहूर्त बताया है- यदि कोई देव च्यवकर अर्थात् देव शरीरत्याग कर मछली आदि में जन्म लेकर पुनः देव बने तो अन्तरकाल जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त होता है किन्तु उत्कृष्टतः वनस्पति आदि में जाने पर आवलिका के असंख्यातवें भाग में रहे असंख्यात समय प्रदेशों की संख्या के समतुल्य असंख्यात पुगल परावर्तन काल जितना हो सकता हैं । ग्रंथकार के अनुसार जघन्य से सनत्कुमार से लेकर सहस्त्रार के देवों में यदि कोई देव व्यवकर पुनः उस ही स्थान में जन्म ले तो कम से कम वह नौ दिन पूर्व जन्म नहीं ले सकता। इसी प्रकार आनत, प्राणत, आरण तथा अच्युत के देवलोक के देव च्यवकर नौ मास से पूर्व पुनः उसी देवभव को प्राप्त नहीं कर सकते । नव ग्रैवेयकों के देव तथा चार अनुत्तर विमानवासी देव नौ वर्ष से पूर्व उनमें पुनः जन्म नहीं ले सकते हैं। किन्तु चारों अनुत्तरविमान वासी देवों की उत्कृष्टतः विरह स्थिति अंथकार ने दो सागरोपम के समतुल्य बतलाई है। सर्वार्थसिद्ध विमान में तो अन्तर- काल है नहीं क्योंकि वहाँ से च्यवन के बाद पुनः वहाँ कोई जन्म लेता ही नहीं, वहाँ से च्यवकर जीव मनुष्यभव प्राप्त करके अन्त में मोक्ष को चला जाता है। व्याख्याप्रज्ञप्ति में अन्तर - काल का परिमाण इससे भिन्न बतलाया गया हैं। देवलोक का सर्व जीव आश्रित उत्कृष्टतः अन्तर- काल नवदिण वीसमुत्ता वारस दिन दस मुहुत्तया इंति । अन्नं तह बावीसा पणबाल असीइ दिवससयं । । २५५ ।
SR No.090232
Book TitleJivsamas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size5 MB
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