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इन तीनों ही राशियों में जघन्य से एक, दो, तीन, चार आदि उत्कृष्ट से संख्यात जीव उत्पन्न होते हैं। ये तीनों राशियाँ संख्यात परिमाण वाली हैं। संख्यात में असंख्यात का मरण (च्यवन) तथा उपपात (जन्म) नहीं हो
सकता।
सिद्ध-सिद्धों के उपपात की निरन्तरता आठ समय तक होती है (अर्थात् सिद्ध गति में जीव आठ समय तक निरन्तर जा सकते हैं) परन्तु उनका च्यवन अर्थात् मरण नहीं होता अर्थात् वे अपने स्थान से च्युत नहीं होते। इस प्रकार इस गाथा में असंख्यात रूप सात राशियों, संख्यात रूप तीन राशियों तथा सिद्धों के च्यवन तथा उपपात की चर्चा की गई है।
सिद्ध
बत्तीसा अडचाला सट्टी बावतरी व बोद्धव्या ।
चुलसीई छण्णउ दुरहिय अद्भुतरसयं च ।। २४९ ।।
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गाथार्थ - बत्तीस, अड़तालीस, साठ, बहत्तर, चौरासी, छियानवें, एक सौ दो, एक सौ आठ- - इस प्रकार क्रमश: अधिकतम आठ समय से लेकर न्यूनतम एक समय में सिद्ध होते हैं।
विवेचन - इस गाथा को निम्नलिखित गाथा से संयोजित करके गाथा को जानना चाहिये
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अठ्ठय, सत्तय, छप्पय क्षेत्र चत्तारि तिनि, दो, एक्कं । बत्तीसाइ पश्सुं समया मणिया जहासंखं । ।
उपर्युक्त गाथा में क्रमशः आठ, सात, छह, पाँच, चार, तीन, दो, एक का संयोजन करना ।
१. जब प्रति समय कम से कम एक तथा उत्कृष्ट से बत्तीस (३२) सिद्ध हो तो सतत् रूप से आठ समय तक सिद्ध होते हैं।
२. जब तैतीस (३३) से लेकर अड़तालीस (४८) तक प्रति समय सिद्ध होते हैं तब निरन्तर सात समय तक सिद्ध होते हैं।
३. जब प्रतिसमय उनपचास (४९) से लेकर साठ (६०) तक सिद्ध हों तब सतत रूप से छह समय तक सिद्ध होते हैं।
४. जब प्रतिसमय इकसठ (६१) से लेकर बहत्तर (७२) तक सिद्ध हों तब सतत रूप से पाँच समय तक सिद्ध होते हैं।