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________________ १७० देवलोक ८ महास्रार ९ अनित १० प्राणत ११ आरण १२ अव्युत १२ देवलोक ९ प्रैवेयक तथा ५ अनुत्तर विमान जघन्यायु उत्कृष्टायु ग्रैवेयक जघन्यायु उत्कृष्टायु १७ सागरोपम १८ सागरोपम १ आदित्य ३० सागरोपम ३१ सागरोपम १८ सागरोपम १९ सागरी विजय १५ सागरोपम २० सागरोपम २ वैजयन्त २० सागरोपम २१ सागरोपम ३ जयन्त जीवसमास ३१ ४ अपराजित ३१ २१ सागरोपम २२ सागरोपम ५ सर्वार्थसिद्ध इयु तिर्यख की उत्कृष्टायु ३१ अगरोधम गरोपम ३ सागरोपम ३३ सागरोपम ३९ ܕ ܕ 1/ — $2 " ३३ सौधर्मदेवलोक की परिगृहिता देवियों की जघन्यायु १ पल्योपम तथा उत्कृष्टायु ७ पल्योपम तथा अपरिगृहिता देवियों की जघन्यायु १ पल्योपम तथा उत्कृष्टायु ५० पल्योपम होती है। इसी प्रकार ईशान देवलोक को परिगृहिता देवियों की जघन्यायु १ पल्योपम से अधिक तथा उत्कृष्टायु ९ पल्योपम तथा अपरिगृहिता देवियों की जघन्यायु १ पल्योपम से अधिक तथा उत्कृष्टायु ५५ पल्योपम होती है। बावीस सस तिनि य घास सहस्त्राणि दस य उक्कोसा | " उपर्युक्त आयु बादरएकेन्द्रियजीवों की अपेक्षा से है। वारस अउणापनं छम्पिय वासाणि दिवसमासा य । पुढविदगानिलपसेयतरुसु तेऊ तिरायं च ।। २०७ ।। गाथार्थ - पृथ्वीकाय की बाईस हजार वर्ष, अप्काय की सात हजार वर्ष, वायुकाय की तीन हजार वर्ष वनस्पति की दस हजार वर्ष तथा तेजस्काय की तीन अहोरात्र उत्कृष्ट आयु होती है। नोट " जलथलखहसंपुच्चिमपज्जतुक्कोस पुष्कोडीओ । वरिसावां चुलसीई बिसत्तरी वेव य सहस्सा ।। १०९ ।। बेदिबाहयाणं नरतिरियाणं तिपल्लं च ।। २०८।। गाथार्थ -- द्वीन्द्रिय की बारह वर्ष, त्रीन्द्रिय की उनपचास (४९) दिन चतुरिन्द्रिय की छः मास और मनुष्य तथा तिर्यञ्च की तीन पल्योपम उत्कृष्ट आयु होती है। 115' さう 12
SR No.090232
Book TitleJivsamas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size5 MB
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