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स्पर्शन-द्वार ईसाणम्मि दिवटा अवाइज्जा य रज्जु माहिंदे । पंधेव सहस्सारे छ अच्चुए सत्त लोगते ।। १९१।।
गाथार्थ- लोक का ऊँचाई मध्य नाक से ईशान देवनोक तक डेढ़ रज्ज. माहेन्द्र देवलोक तक ढाई रज्जु, सहस्रार देवलोक तक पांच रज्जु. अच्युत तक छः रज्जु तथा लोकान्त तक सात रज्ज है।
विवेचन- यहाँ मध्यलोक से देकलोका को ऊंचाई का परिमाण बताया गया है।
___ अग्रिम गाथाओं में जीव लोक का किस प्रकार स्पर्श करता है? इस विषय को स्पष्ट करने हेतु समुद्घात की चर्चा की गई है।
२. स्पर्श समुद्घात
धेयण कसाय परणे वेब्धिय तेयए य आहारे ।
केवलियसमुग्धाए सत्त य मणुएस नायव्या ।। १९२।।
गाथार्थ- वेदना, कषाय, मरण, वक्रिय, तेजस. आहारक और केवली ये सात समुद्घात मनुष्यों में जानना चाहिये।
समुद्धात- मूल शरीर को छोड़े बिना आत्म-प्रदेशो को बाहर निकालने को समुद्घात कहते हैं। तेजस् तथा कार्मण शरीर साथ-साथ रहते हैं। उनका मूल शरीर को छोड़े बिना, उत्तर देह के साथ-साथ, आत्म-प्रदेशो सहित बाहर निकलना समुद्घात कहलाता है।
समुद्घात शब्द तीन पदों की संयोजना से बना है— सम् उत्+घात। वेदना आदि के साथ एकाकार (लीन या संमिश्रित) हुए कालान्तर में उदय में आने वाले (आत्मा से सम्बद्ध) वेदनीयादि कमों को उदारणा के द्वारा उदय में लाकर प्रबलतापूर्वक धात करना या उनकी निर्जरा करना समुद्घात कहलाता है। आत्मा समुद्घात क्यों करता है ?
जैसे किसी पक्षी के पंख पर बहुत धूल चढ़ गयी हो, तब वह पक्षी अपने पंख फैलाकर, फड़फड़ाकर धूल को झाड़ देता है। इसी प्रकार यह आत्मा बद्ध कर्म पुद्गल (कर्मवर्गणाओं) को झाड़ने (निर्जरित करने) के लिए समुद्घात नामक क्रिया करता है।