________________
स्पर्शन्- द्वार
१५५
इक्षुवर द्वीप एवं इक्षु समुद्र हैं उसका जल इक्षु रस के स्वाद वाला है। अन्तिम स्वयंभूरमण समुद्र को छोड़कर शेष सभी समुद्रों का पानी इक्षु रस के तुल्य हैं।
द्वीपों के नाम इस प्रकार हैं- इक्षुवर द्वीप के बाद नन्दीश्वर, अरुणवर, अरुष्णावास, कुण्डलवर, शंखवर, रुचकवर अनुयोगद्वारचूर्णि में तेरहवां द्वीप रुचकवर बताया गया है। रुचकवर द्वीप के बाद असंख्य द्वीप समुद्र के बाद भुजंगवर मका है। किरण द्वीप-समुद्र के बन्द कुशवर नामक द्वीप हैं। उसके बाद फिर असंख्यद्वीप समुद्र के बाद क्रौंचवर द्वीप हैं। अन्तिम समुद्र का नाम स्वयंभूरमण हैं।
समयसागर नामक ग्रन्थ में कहा गया है-- हे भगवन् ! द्वीप- समुद्रों में कितने नाम कहे हैं? हे गौतम! लोक में जितने शुभनाम शुभ रूप, शुभ गंध, रस, शुभ स्पर्श हैं उतने ही द्वीप समुद्रों के नाम जानना चाहिये।
शुभ
तत्त्वार्थसूत्र ३ / ७ में भी "जम्बूद्वीपलवणादय: शुभनामानो द्वीपसमुद्राः” कहा है। अब आगे अधोलोक का वर्णन करते हैं।
क्या रत्नप्रभा आदि स्नात पृथ्वियाँ स्पर्शनीय हैं? इन पृथ्वियों का परिमाण कितना है? ये पृथ्वियाँ अन्तराल वाली है या बिना अन्तराल बाली हैं? नीचे की पृथ्वी ऊपर की पृथ्वी से अधिक विस्तार वाली हैं या समान विस्तार वाली है? आगे इन्हीं प्रश्नों का समाधान किया गया है
तिरियं लोगायामं ममाया हेद्वा उ सध्वपुढवीणं । आगासंतरियाओ विच्छिन्नबराज हेड्डेड्वा ।। १८९ ।।
गाथार्थ - नीचे की रत्नप्रभादि सभी पृथ्वियों का विस्तार तिर्यक् (मध्य) लोक
-
के आयाम जितना है। समस्त पृथ्वियों के बीच में आकाश रूपी अन्तराल हैं तथा वे एक-एक के नीचे-नीचे स्थित है और अधिक अधिक विस्तार वाली हैं।
विवेचन – पूर्वगाथा में मध्यलोक की बात कही। अब अधोलोक की चर्चा की जा रही है
मध्यलोक के बाद नीचे-नीचे उसके समान विस्तार वाली सात पृथ्वियाँ (नरक) हैं। ये सातों पृथ्वियाँ असंख्यात हजार योजन विस्तार वाले आकाश खण्ड से परस्पर एक-दूसरे से अलग हैं। इस प्रकार रत्नप्रभा के बाद असंख्यात योजन विस्तार वाले आकाश खण्ड के बाद शर्कराप्रभा पृथ्वी है। उस शर्कराप्रभा के नीचे बालुकाप्रभा हैं। इसी क्रम से छठी पृथ्वी के नीचे असंख्यात हजार योजन विस्तार वाले आकाश के अन्तराल के पश्चात् सातवीं पृथ्वी तमस्तमप्रभा है।